लेखिका- रिचा बर्नवाल
पार्क में आरती ने संगीता को कुछ ऐक्सरसाइजें सिखाईं. लौटने के समय संगीता बहुत खुश थी.
‘‘मम्मी, शादी के बाद से मेरा वजन लगातार बढ़ता जा रहा है. क्या व्यायाम से मैं पतली हो जाऊंगी,’’ आंखों में आशा की चमक ला कर संगीता ने अपनी सास से पूछा.
‘‘इन के अलावा वजन कम करने का और क्या तरीका होगा? पर एक समस्या है,’’ आरती की आंखों में उलझन के भाव पैदा हुए.
‘‘कैसी समस्या?’’
‘‘सुबह पार्क में आने की.’’
‘‘मैं जल्दी उठ जाया करूंगी.’’
अचानक आरती ताली बजाती हुई बोलीं, ‘‘मैं तुम्हारे ससुर को जोश दिलाती हूं कि वे
रवि को नाश्ते की चीजें बनाना सिखाएं. उन दोनों को रसोई में उलझ कर हम पार्क चली आया करेंगी.’’
‘‘बिलकुल ऐसा ही करेंगे, मम्मी. आम के आम और गुठलियों के दाम. मेरा वजन भी कम होने लगेगा और नाश्ता भी बनाबनाया मिल जाएगा,’’ संगीता प्रसन्न नजर आने लगी.
उधर रसोई में रमाकांत अपने बेटे को समझ रहे थे, ‘‘रवि, मैं ने कुछ चीजें तेरी मां
से बनानी सीखीं क्योंकि अब उस की तबीयत ज्यादा ठीक नहीं रहती. मैं ने देखा है कि तू भी अधिकतर डबलरोटी मक्खन खा कर औफिस जाता है. मैं तुझे ये 5-7 चीजें बनानी सिखा देता हूं. ढंग का नाश्ता घर में बनने लगेगा, तो तेरा और बहू दोनों का फायदा होगा.’’
‘‘पोहा बनाने में आप की सहायता करना मुझे अच्छा लगा, पापा. आप मुझे बाकी की चीजें भी जरूर सिखाना,’’ रवि खुश नजर आ रहा था.
‘‘अब ब्रश कर के आ. फिर हम दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करेंगे.’’
‘‘मम्मी और संगीता के आने का इंतजार नहीं करेंगे क्या?’’
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