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मंजरी की अमित से मुलाकात एक एजूकेशनल कैंप में हुई थी, जो अंतर्विश्वविद्यालय की तरफ से लगाया गया था, जहां दोनों एकदूसरे के करीब आए. फिर हमेशा के लिए जुदा हो गए.

इस सीमित समय में दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे, मगर दिल की बात दिल में ही रह गई. समय गुजरता गया. आहिस्ताआहिस्ता दोनों एकदूसरे को भूल गए.

मंजरी की जिंदगी में सुधीर आया. सुधीर के पिता बहुत बड़े अधिकारी थे. काफी संपन्न परिवार था, जबकि मंजरी का मीडिल क्लास परिवार उस के आगे कहीं नहीं टिकता था. इस के बाद भी दोनों का प्यार परवान चढ़ा. जिस की परिणति शादी पर जा कर खत्म हुई.

मामूली से क्वार्टर में रहने वाली मंजरी के लिए ससुराल किसी महल से कम नहीं था. नौकरचाकर, कार, रुतबा, सबकुछ उसे एकाएक मिल गया. अगर नहीं मिला तो वह सम्मान, जिस की वह हकदार थी.
सास उसे हमेशा हिकारत भरी नजरों से देखती थी. इस का बहुत बड़ा कारण था मंजरी का उस की अपेक्षा निम्न स्तर का होना. पढ़ाईलिखाई, रंगरूप, सब में वह बीस थी, तिस पर सास का रवैया उस के लिए भारी पड़ रहा था. वे उसे अपने रसोईघर तक में घुसने नहीं देती थीं.

आजिज आ कर मंजरी ने अपनी रसोई दूसरी जगह कर ली. इस के बावजूद उन के रवेेैए में कोई खास बदलाव नहीं आया.

एक दिन तंग आ कर मंजरी ने सुधीर से कहा, ’’मेरा यहां दम घुटता है. मम्मी मुझे किसी भी चीज में हाथ लगाने नहीं देतीं. जबतब ताने देती हैं कि मैं ने तुम्हें फांस लिया.’’

‘‘धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा,’’ सुधीर ने टाला.

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