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‘‘मुझे संदीप पर पूरा विश्वास है,’’ उस ने यह बात मानो मेरे बजाय खुद से कही थी.

‘‘होना भी चाहिए,’’ मैं ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई.

‘‘आंटी, मेरी समस्या का दूसरा पहलू क्या है?’’ अर्चना ने मुसकराने की कोशिश करते हुए पूछा.

‘‘तुम्हारी खुशी...तुम्हारे मन की सुखशांति,’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, आंटी.’’

‘‘अभी इस बारे में मुझ से कुछ मत पूछो. पर मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूं कि संदीप के विदेश जाने में अभी 2 सप्ताह बचे हैं और इस समय के अंदर ही तुम्हारी समस्या का उचित समाधान मैं ढूंढ़ लूंगी.’’

ऐसा आश्वासन पा कर अर्चना ने मुझ से आगे कुछ नहीं पूछा.

अर्चना की मां सावित्री एक आम घरेलू औरत थीं. मेरी 2 सहेलियां उन की भी परिचित निकलीं तो हम जल्दी सहज हो कर आपस में हंसनेबोलने लगे.

मैं ने अर्चना की शादी का जिक्र छेड़ा तो सावित्री ने बताया, ‘‘मीना बहनजी, इस के लिए इस की बूआ ने बड़ा अच्छा रिश्ता सुझाया है पर यह जिद्दी लड़की हमें बात आगे नहीं चलाने देती.’’

‘‘क्या कहती है अर्चना,’’ मैं ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘यही कि एम.बी.ए. के बाद कम से कम साल भर नौकरी कर के फिर शादी के बारे में सोचूंगी.’’

‘‘उस के ऐसा करने में दिक्कत क्या है, बहनजी?’’

‘‘अर्चना के पापा इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहते. अपनी बहन का भेजा रिश्ता उन्हें बहुत पसंद है.’’

मैं समझ गई कि आने वाले दिनों में अर्चना पर शादी का जबरदस्त दबाव बनेगा. अर्चना की जिद कि संदीप सगाई कर के विदेश जाए, मुझे तब जायज लगी.

‘‘अर्चना, कल तुम पार्क में मुझे संदीप से मिलाना. तब तक मैं तुम्हारी परेशानी का कुछ हल सोचती हूं,’’ इन शब्दों से उस का हौसला बढ़ा कर मैं अपने घर लौट आई.

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