शाम के 7 बज रहे थे. सुमन ने तैयार हो कर ड्रैसिंगटेबल में स्वयं को निहारा. उसे अपना यह ब्लू सूट अपने विवाह के कपड़ों में सब से अधिक प्रिय था. आज विवाह के 2 साल बाद दूसरी बार ही इस का नंबर आया था. बीच के दिन तो कोविड के लौक दिनों में खो गए थे. विनय ने औफिस से निकलने से पहले फोन किया था, ‘‘तैयार रहना, बाहर चलेंगे. आज फ्राइडे नाइट है, कल औफिस की छुट्टी है, आराम से घूमफिर कर आएंगे.’’

सुमन ने तो कहा था, ‘‘फिर आज आराम कर लो, कल चलेंगे घूमने. आज तो औफिस की भी थकान रहेगी.’’

‘‘नहीं, मेरा आज ही मन है, तैयार रहना.’’

‘‘ठीक है,’’ इतना ही कहा था सुमन ने और अब वह तैयार थी. विनय को इतना तो जान ही गई थी कि वह आत्मकेंद्रित किस्म का पुरुष है, वह उस पर भी अपनी ही पसंद थोपता, जिसे वह प्यारमनुहार समझ कर मान ही लेती थी. उसे प्यार करता था, उस की केयर करता था वह इसी में खुश हो जाती थी पर कहीं कुछ था जो दिल बुझ जाता था. दोनों की अरैंज्ड मैरिज थी. दोनों ही लखनऊ के रहने वाले थे. विनय यहां मुंबई में एक एडवरटाइजिंग कंपनी में काम करता था. यह फ्लैट शादी के कुछ ही दिनों पहले विनय ने खरीद लिया था. लौकडाउन के 2 सालों में उस ने बुरी तरह विनय की मनमानी झेली थी पर संस्कारों में बंधी पत्नी के पास और कोई चारा

न था.

डोरबैल बजी, विनय ही था. उत्साहित सा अंदर घुसते हुए बोला, ‘‘अरे, तैयार नहीं हुई?’’

सुमन को कुछ चुभा, ‘‘तैयार ही तो हूं.’’

‘‘यह ब्लू सूट? तुम ने जो कुछ दिन पहले पीला सूट पहना था, मुझे वही पसंद है, उसे ही पहन लो.’’

‘‘पर यह मेरा फैवरिट…’’

‘‘अरे नहीं, चेंज कर लो न. मैं भी फ्रैश होता हूं.’’

बुझे मन से सुमन ने पूछा, ‘‘चाय बना दूं?’’

‘‘तुम ने नहीं पी अभी तक?’’

‘‘नहीं, तुम्हारा वेट कर रही थी.’’

‘‘अच्छा, कोल्ड कौफी पीने का मन है, बनाओगी?’’

‘‘हां, ठीक है तुम्हारे लिए बना देती हूं. मैं अपने लिए चाय…’’

‘‘अरे नहीं, अपनी भी कौफी ले आओ न. कहां 2-2 चीजें बनाओगी?’’

‘‘नहीं, मैं चाय…’’

‘‘अरे नहीं, दोनों कौफी ही पीते हैं.’’

सुमन की आंखें छलक उठीं, क्या वह अपनी मरजी से एक कप चाय भी नहीं पी सकेगी. बहस करना, लड़ना उसे अच्छा नहीं लगता पर क्या वह हमेशा इस आदमी के साथ मन मार कर जीती रहेगी? उस का मन किया अपने लिए चाय बना दे, शाम को 1 कप चाय पीने की उस की सालों पुरानी आदत है और विनय यह जानता है पर कहीं विनय को बुरा न लगे यह सोच कर उस ने अपने लिए कौफी ही बना ली.

‘‘वाह, क्या कौफी बनाई मन कर रहा है. हाथ चूम लूं,’’ कहते हुए विनय ने हंसते हुए सुमन के गालों पर किस करते हुए रोमांटिक स्वर में कहा, ‘‘बस, अब हम दोनों पूरी शाम एकदूसरे की बांहों में बांहे डाले घूमेंगे, बस अब तुम जल्दी से चेंज कर लो.’’

मन मार कर सुमन ने कपड़े बदल लिए. विनय ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘अब सुंदर लग रही हो.’’

सुमन बस झूठ ही मुसकरा दी. बाहर जा कर थोड़ा इधरउधर घूमने के बाद विनय ने कहा, ‘‘एक नया रैस्टोरैंट खुला है चलो वहीं ट्राई करते हैं.’’

‘कोर्टथार्ड’ में बहुत बड़े लौन में खुले में बैठने की शानदार व्यवस्था थी. पहली नजर में ही सुमन को वह जगह भा गई. बहुत ही सुंदर लाइटिंग थी. एक कोने में लाइव म्यूजिक चल रहा था. वहां एक लड़का बहुत ही बढि़या आवाज में गजलें गा रहा था. सुमन को वह पूरा माहौल बहुत ही रोमानी लगा.

वह विनय का हाथ पकड़े चलतेचलते एक टेबल पर बैठ गई. बोली, ‘‘बहुत ही सुंदर जगह है. आते ही मन खुश हो गया.’’

‘‘हां, पर ये गजलें मुझे बोर करती हैं. वेटर को बुला कर कहता हूं. उस सिंगर को कुछ और गाने के लिए कहे.’’

‘‘नहीं विनय, प्लीज, यह अच्छा नहीं लगता और इस माहौल में गजलों से अलग ही समा बंध रहा है. देखो न लोग कितने आराम से बैठे सुन रहे हैं, मत टोकना, अच्छा नहीं लगेगा.’’

पता नहीं कैसे विनय ने ‘‘ठीक है,’’ कह कर सिर हिला दिया तो सुमन ने चैन की सांस

ली. घर पर भी वह बहुत ही लाउड म्यूजिक पसंद करता था. जब भी सुमन कोई पुराना गाना सुन रही होती, झट से बदल देता. वेटर मेन कार्ड ले कर आया. विनय ने सब उलटपुलट कर देखा, फिर सुमन से बिना पूछे ही और्डर देते हुए कहा, ‘‘एक प्लेट चाउमिन और 1-1 थाई करी भटूरे ले आओ.’’

सुमन का चेहरा उतर गया. पास बैठी पत्नी से उस की पसंद तक पूछने का सामान्य शिष्टाचार तक नहीं है इस आदमी के पास. मन में क्रोध का एक लावा सा उठा जिसे वह बहुत ही यत्न से दबा कर रह गई, फिर भी बोली, ‘‘मुझे कुछ और खाना था, विनय.’’

‘‘अरे, कुछ और फिर कभी खा लेंगे.’’

‘‘पर मुझे इतना चाइनीज पसंद नहीं…’’

‘‘अरे, बस ऐंजौय करो.’’

सुमन सोचने लगी, क्या ऐंजौय कर सकता है इंसान जब वह अपनी मरजी से कुछ कर ही न सके, पहन न सके, खापी न सके. उस के बाद बहुत ही मन मार कर सुमन ने डिनर किया, ऊपर से हंसतीबोलती भी रही. चेहरे पर शिकन तक न आने दी पर बारबार मन में यही खयाल आ रहा था कि कैसे कटेगा जीवन ऐसे इंसान के साथ. वह सुशिक्षित थी, अच्छे संस्कार ले कर आई थी, शांत, धैर्यवान थी पर कब तक वह अपना मन मार कर जीएगी. वह जानती थी कि पढ़ीलिखी होने के बावजूद न नौकरी मिलना आसान है न अलग घर बसाना.

अगले कई दिन भी ऐसे ही बीते. विनय ने कभी किसी चीज में उस की पसंद को महत्त्व नहीं दिया. उस की शिक्षा का, उस की योग्यता का, किसी भी क्षेत्र में उस की जानकारी का विनय के लिए कोई महत्त्व नहीं था. वह एक खुदपसंद इंसान था जिसे हर चीज जीवन में अपने मनमुताबिक चाहिए होती.

एक दिन विनय औफिस से बहुत ही उत्साहित व प्रसन्न लौटा, ‘‘सुमन, कल एक नए परफ्यूम का मेरा प्रेजैंटेशन है. मेरे बौस नवीन ने तुम्हें भी इन्वाइट किया है. कहा है तुम भी सब से मिल लोगी, सब तुम से मिलना चाहते हैं. नवीन सर बहुत ही अच्छे इंसान हैं. हम सब को परिवार के सदस्यों की तरह ही ट्रीट करते हैं.’’

सुमन ने भी जाने के लिए हामी भर दी.

अगले दिन शाम को वह विनय के औफिस के हौल में पहुंची. बड़ी चहलपहल थी. नए एड की तैयारी थी जिसे विनय ने अपनी टीम के साथ तैयार किया था. नवीन सहित सभी लोगों ने उस का भरपूर स्वागत किया. उसे सब से मिल कर अच्छा लगा. वह सब से हंसतेमुसकराते मिल कर एक चेयर पर बैठ गई. विनय कुछ काम में व्यस्त हो गया. उस के पास की चेयर पर ही नवीन आ कर बैठ गए और उस से आम बातचीत करते रहे.

नवीन उसे बहुत ही शिष्ट और सभ्य इंसान लगे. उन से बात करना सुमन को बहुत ही अच्छा लग रहा था. वे सुमन से उस की ऐजुकेशन, शौक पूछते रहे. थोड़ी औपचारिकताओं के बाद परफ्यूम के एड का प्रेजैंटेशन शुरू  हुआ, ‘अजूरी’ परफ्यूम लगा कर लड़का जहां भी जा रहा है, लड़कियां उस की हेल्प करने के बहाने ढूंढ़ कर उस के आसपास मंडरा रही हैं और वह सब के आकर्षण का केंद्र बनने पर आनंद उठा रहा है. कुछ इसी तरह का एड था, जिस के खत्म होने पर तालियां बजीं.

नवीन ने सुमन को चुपचाप, निर्विकार सा बैठे देखा तो चौंक, बोले, ‘‘क्या हुआ? एड पसंद नहीं आया?’’

सुमन ने पलभर सोचा, फिर बोली, ‘‘हां सर, कुछ खास नहीं लगा.’’

‘‘परफ्यूम के एड इसी तरह के होते हैं.’’

‘‘यह तो कई बार देखे हुए एड की तरह ही लगा. इस में कुछ नया नहीं है. ऐसे एड की तो भरमार है. कुछ तो नया होना चाहिए.’’

‘‘परफ्यूम के एड में यही सब होता है.’’

‘‘नहीं, सर और भी बहुत कुछ हो सकता है.’’

‘‘अच्छा? जैसे? तुम्हारे पास है कोई आइडिया?’’

‘‘हां सर, अभीअभी देखते हुए आया है.’’

‘‘अच्छा, बताओ फिर.’’

‘‘यह भी तो हो सकता है कि एक लड़का घर में अपने पिता का फोटो भावुक हो कर देख रहा है, फोटो पर माला भी है. पिता की मृत्यु कोविड से हुई थी. फिर तैयार होता हुआ ‘अजूरी’ परफ्यूम लगा कर औफिस जाता है. वहां उस की लेडी बौस गहरी सांस खींचती हुई कहती है, ‘क्या खुशबू है. तुम हमेशा यही लगाते हो न, क्यों?’ वह लड़का कहता है, ‘मुझे इस में अपने पिता के आसपास होने की खुशबू आती है. वे यही परफ्यूम लगाते थे,’ और वह मुसकराता हुआ चला जाता है.

‘‘लेडी बौस के पास खड़ी अन्य महिला सहयोगी खुशबू को सांसों में भर कर कहती है, ‘वाह, व्हाट ए मैन,’ काफी डीसैंट सा एड बन सकता है सर, सुमन ने कहा, ‘‘और यह भी हो सकता है अगर थोड़ा फनी एड चाहिए तो मां औफिस जाते हुए अपने बेटे को कह रही है कि बेटा, टिफिन क्यों नहीं ले जाते? घर का खाना ठीक रहता है.’ बेटा कहता है, ‘रोज घर का ही खाता हूं, डौंट वरी, मौम.’ मां पूछती है, ‘कैसे?’ बेटा तैयार होता हुआ ‘अजूरी’ परफ्यूम लगाता है, औफिस में लंच टाइम में सब लड़कियां उस से घर का लाया हुआ टिफिन शेयर कर रही हैं और परफ्यूम की खुशबू में डूबी हुई हैं, वह मुसकराता हुआ मां को खाने का फोटो व्हाट्सऐप पर भेज रहा है.’’

सुमन चुप हुई तो नवीन जैसे होश में आए. उत्साह से खड़े हो गए, सुमन भी

खड़ी हो गई. बोले, ‘‘शाबाश, कमाल कर दिया, वाह दिल खुश हो गया,’’ उन्होंने जोर से आवाज दी, ‘‘विनय, कम हेयर.’’

उन की उत्साहित आवाज ने सब का ध्यान खींचा. वहां उपस्थित सब लोगों को नवीन ने इशारे से बुला लिया. वे विनय से कहने लगे, ‘‘कितनी जीनियस है तुम्हारी पत्नी. इन्होंने बैठेबैठे ही एड का नया आइडिया दिया है.’’

विनय बुरी तरह चौंका, ‘‘क्या हुआ सर?’’

नवीन ने सुमन को आइडिया बता कर कहा, ‘‘विनय, अब इस पर काम करो, टाइम बहुत कम है,’’ और फिर सुमन को तारीफ भरी नजरों से देखते हुए बोले, ‘‘आप अभी भी काम करना चाहें तो हमें जौइन कर सकती हैं.’’

उस के बाद सुमन की खूब वाहवाही होती रही, इतनी योग्य पत्नी पाने की मुबारकबाद विनय हैरान होते हुए सुनता रहा. डिनर करते हुए भी सुमन ही आकर्षण का केंद्र रही. विनय पता नहीं क्याक्या सोचता रहा.

डिनर के बाद विनय और सुमन ने सब से विदा ली और घर चल दिए, विनय अपने विचारों में गुम था, भरी महफिल में सुमन की बुद्धिमत्ता की वाहवाही का उसे तेज झटका लगा था. सुमन उस से आम बातें करती रही. उसी समय कार में एफएम पर पुराना गाना बज उठा तो आदतन विनय ने बदलना चाहा. पर एक झटके से बिना बदले अपना हाथ पीछे कर लिया. सुमन ने यह जरा सी हरकत नोट कर ली थी. कनखियों से कार चलाते विनय का चेहरा देखा, वह शांत था.

अचानक दोनों की नजरें मिलीं तो विनय मुसकरा दिया. उस मुसकराहट में बहुत कुछ था जिसे महसूस करते ही सुमन को विनय के साथ अपना भविष्य बहुत ही सुखमय लगा.

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