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उन्मुक्त की शादी में श्रेयसी को बहुत दिनों बाद देखा था मंजुला ने. श्रेयसी के लिए फैशनेबल कपड़े पहनना मना था. उसे केवल सलवारकुरता पहनने की इजाजत थी. दुपट्टा हर समय पहनना जरूरी था. भाभी की हर समय की डांटफटकार से श्रेयसी को अकेले में आंसू बहाते हुए देख, वह भी रो पड़ी थी.

उस के आंसू देख भाभी गरम हो कर बोली थीं, ‘अपने टेसुए किसी और को दिखाना, अपनी चालचलन ठीक रखो. लड़कियों का जोरजोर से हंसना अच्छा नहीं होता. इतनी जोर के ठहाके क्यों लगाती हो? चल कर नाश्ता लगाओ.’

यदि वह उन्मुक्त से मजाक करती, तो भाभी जोर से डांट कर कहतीं, ‘लड़कों के बीच घुसी रहती हो, चलो, ढोलक बजाओ और औरतों के साथ बैठो.’

ऐसी बातें सुन कर सब का मन खराब हो गया था. भैयाभाभी के चले जाने के बाद सब ने चैन की सांस ली थी. सब अपनीअपनी दुनिया में व्यस्त हो गए थे. प्यारी सी बहू छवि के आने के बाद घर में रौनक आ गई थी.

8 महीने बीते थे कि एक दिन मंजुला के मोबाइल पर भाभी का फोन आया, ‘जीजी, श्रेयसी रिसर्च करना चाहती है. इसलिए हम लोग आप पर विश्वास कर के उसे लखनऊ भेज रहे हैं. वह लड़कियों वाले होस्टल में रहेगी. आप लोगों के विश्वास पर ही उसे आगे पढ़ने के लिए भेज रहे हैं. मेरा तो बहुत जी घबरा रहा है. समय बहुत खराब है. आजकल लड़कियों के कदम बहकते देर नहीं लगती है.’

‘भाभी, घबराने की कोई बात नहीं है. श्रेयसी बहुत समझदार है. आप ठीक समझो तो श्रेयसी को मेरे घर पर ही रहने दो. मुझे अच्छा ही लगेगा. छवि और आयुषी के साथ उस को खूब अच्छा लगेगा.’

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