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फिर एक खूबसूरत सी लड़की से उस की शादी करा दें और पोतेपोतियों को खिलाएं. मगर एक दिन मोहित के आए फोन ने उन के इस सपने पर भी पल में पानी फेर दिया, जब उस ने बताया कि पापा मुझे सिंगापुर में एक अच्छी जौब मिल गई है और अगले महीने ही मैं हमेशा के लिए सिंगापुर शिफ्ट हो जाऊंगा. ‘‘क्या? सिंगापुर जा रहा है? पर क्यों बेटे?’’ कौस्तुभ की जबान लड़खड़ा गई, ‘‘अपने देश में भी तो अच्छीअच्छी नौकरियां हैं, फिर तू बाहर क्यों जा रहा है?’’ लपक कर प्रिया ने फोन ले लिया था, ‘‘नहींनहीं बेटा, इतनी दूर मत जाना. तुझे देखने को आंखें तरस जाएंगी. बेटा, तू हमारे साथ नहीं रहना चाहता तो न सही पर कम से कम इसी शहर में तो रह. हम तेरे पास नहीं आएंगे, पर इतना सुकून तो रहेगा कि हमारा बेटा हमारे पास ही है. कभीकभी तो तेरी सूरत देखने को मिल जाएगी. पर सिंगापुर चला गया तो हम...’’ कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी.

‘‘ओह ममा कैसी बातें करती हो? भारत में कितनी गंदगी और भ्रष्टाचार है. मैं यहां नहीं रह सकता. विदेश से भी आनाजाना तो हो ही जाता है. कोशिश करूंगा कि साल दो साल में एक दफा आ जाऊं,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया था. प्रिया के आंसू आंखों में सिमट गए. उस ने रिसीवर रखा और बोली, ‘‘वह फैसला कर चुका है. वह हम से पूरी तरह आजादी चाहता है, इसलिए जाने दो उसे. हम सोच लेंगे हमारी कोई संतान हुई ही नहीं. हम दोनों ही एकदूसरे के दुखदर्द में काम आएंगे, सहारा बनेंगे. बस यह खुशी तो है न कि हमारी संतान जहां भी है, खुश है.’’ उस दिन के बाद कौस्तुभ और प्रिया ने बेटे के बारे में सोचना छोड़ दिया. 1 माह बाद मोहित आया और अपना सामान पैक कर हमेशा के लिए सिंगापुर चला गया. शुरुआत में 2-3 माह पर एकबार फोन कर लेता था, मगर धीरेधीरे उन के बीच एक स्याह खामोशी पसरती गई. प्रिया और कौस्तुभ ने दिल पत्थर की तरह कठोर कर लिया. खुद को और भी ज्यादा कमरे में समेट लिया. धीरेधीरे 7 साल गुजर गए. इन 7 सालों में सिर्फ 2 दफा मोहित का फोन आया. एक बार अपनी शादी की खबर सुनाने को और दूसरी दफा यह बताने के लिए कि उस का 1 बेटा हो गया है, जो बहुत प्यारा है.

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