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लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

मुंहदिखाई के लिए पड़ोस की महिलाएं और घर में आए हुए रिश्तेदार थे. सभी ने मेरी खूबसूरती और साथ आए हुए साजोसामान की खुले दिल से तारीफ की. मैं ने अपनी सासूमां की तरफ देखा... उन का चेहरा गर्व और खुशी से दमक रहा था.

सब को संतुष्ट देख मन को शांति मिली. सभी के जाने के बाद सासूमां ने मां को फोन किया और उन्हें भरोसा दिलाया कि उन की बेटी अब इस घर की बेटी है, मुझ से बात कराई.

शाम ढलने को थी. प्रवीण गृहप्रवेश रस्मों के बाद से दिखे नहीं थे. मुझे एक

सजेसजाए कमरे में ले जा कर बैठा दिया गया. हर लड़की की तरह अपनी सुहागरात के सुंदर सपने सजाए मैं प्रवीण का इंतजार करने लगी.

दिनभर की रस्मों से थकान महसूस हो

रही थी, कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

‘‘गौरी, उठो बेटी,’’ सासूमां की आवाज सुन मैं चौंक कर

उठ बैठी.

‘‘सौरी मां मैं इतनी देर तक नहीं सोती, पता नहीं ऐसे कैसे सो गई थी,’’ मेरी नजर शर्म से फर्श पर टिकी थी.

‘‘कोई बात नहीं बेटी, तुम बहुत थकी हुई थी, इसलिए नींद आ गई

चलो अब नहा लो और तैयार हो कर बाहर आ जाओ, कुछ रिश्तेदार जाएंगे अभी थोड़ी देर में,’’ हंसते हुए उन्होंने मेरे सिर पर अपना प्यारभरा

हाथ रखा.

‘‘जी मां, अभी तैयार हो कर आती हूं.’’

सासूमां के जाने के बाद मैं प्रवीण के लिए सोच रही थी. संकोचवश उन से पूछ भी न सकी. रात में वे कमरे में आए भी थे या नहीं या सुबह उठ कर चले गए हों, ‘उफ गौरी ऐसे कैसे अपनी सुहागरात में घोड़े बेच कर सो गई,’ खुद को कोसते हुई तैयार होने के लिए उठी.

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