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एकदम सामने से करीब आ रही कार को देख कर गौरव ने घबराहट में कार बाईं ओर मोड़ दी. किर्र की आवाज के साथ कार किनारे खड़े पेड़ से टकरा कर रुक गई. सामने वाली कार के चालक ने ब्रेक लगा कर अपनी कार रोक ली. कार को किनारे पार्क कर के कार चालक पेड़ से टकराई कार के यात्रियों की ओर आया और बोला, ‘‘आर यू ओके गाइज?’’ उन के सामने एक 29-30 वर्ष का अमेरिकी युवक खड़ा था.

‘‘जी...’’ गौरव इतना ही कह सका.

संयोग से गौरव और नेहा को ज्यादा चोट नहीं आई थी, पर स्टीयरिंग व्हील से टकराने के कारण गौरव के माथे से खून निकल रहा था. दहशत की वजह से नेहा सुन्न सी हो रही थी.

‘‘क्या मरने के लिए घर से निकले थे? अपनी लेन का भी ध्यान नहीं रहा. गलत लेन में आने पर कितना जुर्माना देना होगा, जानते हो न?’’

‘‘सौरी, माफ कीजिए, मैं कुछ परेशान था, इसलिए लेन का ध्यान नहीं रहा,’’ कार से उतर कर गौरव ने अपनी गलती मानी.

‘‘परेशान होने का मतलब यह तो नहीं कि किसी दूसरे को मुश्किल में डाल दो. अगर मेरी कार की टक्कर से तुम्हें कुछ हो जाता तो...’’ अचानक युवक की दृष्टि गौरव के माथे से निकलते खून पर पड़ी.

‘‘अरे, तुम्हारे माथे पर तो चोट लगी है, चलो, तुम्हें हास्पिटल ले चलता हूं,’’ अमेरिकी युवक ने अब हमदर्दी से कहा.

‘‘नहीं, नहीं, इस की जरूरत नहीं है. मामूली सी चोट है, घर में फर्स्ट एड का सामान है. चोट पर दवा लगा लेंगे,’’ गौरव ने संकोच से कहा.

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