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‘‘दीदी, जरा गिलास में पानी डाल दो,’’ रम्या ने खाने की मेज के दूसरी ओर बैठी अपनी बड़ी बहन नंदिनी से कहा था.

‘‘आलस की भी कोई सीमा होती है या नहीं? तुम एक गिलास पानी भी अपनेआप डाल कर नहीं पी सकतीं,’’ नंदिनी ने टका सा जवाब दिया था.

‘‘पानी का जग तुम्हारे सामने रखा था इसीलिए कह दिया. भूल के लिए क्षमा चाहती हूं. मैं खुद ही डाल लूंगी,’’ रम्या उतने ही तीखे स्वर में बोली थी.

‘‘वही अच्छा है. तुम जितनी जल्दी अपना काम खुद करने की आदत डाल लो तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा रहेगा,’’ नंदिनी सीधेसपाट स्वर में बोली थी.

‘‘मैं सब समझती हूं, इतनी मूर्ख नहीं हूं. ईर्ष्या करती हो तुम मुझ से.’’

‘‘लो और सुनो. मैं क्यों ईर्ष्या करने लगी तुम से?’’

‘‘बड़ी बहन कुंआरी बैठी रहे और छोटी का विवाह हो जाए, क्या यह कारण कम है?’’ रम्या तीखे स्वर में बोली थी पर इस से पहले कि नंदिनी कुछ बोल पाती, उन की मां रचना ने दोनों का ध्यान आकर्षित किया था.

‘‘तुम दोनों अपने झगड़े से थोड़ा सा समय निकाल सको तो मैं भी कुछ बोलूं?’’

‘‘क्या मां? आप भी मुझे ही दोष दे रही हैं?’’ नंदिनी ने शिकायत की थी.

‘‘मैं किसी को दोष नहीं दे रही बेटी. मैं तो भली प्रकार जानती हूं कि मेरी 30-30 साल की दोनों बेटियां 5 मिनट के लिए भी आपस में लड़े बिना नहीं रह सकतीं.’’

‘‘30 साल की होने का ताना आप मुझे ही दे रही हैं न? रम्या तो मुझ से 2 साल छोटी है और मैं बड़ी हूं तो सारा दोष भी मेरा ही होगा,’’ नंदिनी ने आहत होने का अभिनय किया था.

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‘‘मेरा ऐसा कोई तात्पर्य नहीं था. मैं जो कहने जा रही हूं उस का तुम दोनों से कुछ भी लेनादेना नहीं है. मैं तो केवल यह कहना चाहती हूं कि मैं ने यह शहर या यों कहूं कि यह देश ही छोड़ कर जाने का निर्णय कर लिया है,’’ रचना ने मानो शांत जल में पत्थर दे मारा था.

‘‘क्या? कहां जा रही हैं आप?’’ खाने की मेज पर बैठे पति नीरज के विस्फारित होते नेत्रों को उस ने देखा था. रम्या के पति प्रतीक का मुंह खुला का खुला रह गया था और दोनों बेटियों की नजर मां पर ही गड़ी हुई थी.

‘‘हमारे बैंक की एक नई शाखा ‘सीशेल्स’ में खुलने जा रही है. मैं ने वहीं जा कर नई शाखा का कार्यभार संभालने की स्वीकृ ति दे दी है. हमारे बैंक से और 2-3 कर्मचारी भी साथ जा रहे हैं,’’ रचना ने अपनी बात पूरी की थी.

‘‘क्यों उपहास कर रही हैं मां? अब इस आयु में आप देश छोड़ कर जाएंगी?’’ रम्या हंस पड़ी थी पर नंदिनी केवल उन का मुंह ताकती रह गई थी.

‘‘यह उपहास नहीं वास्तविकता है बेटी. दिनरात की इस कलह में मेरा मन घुटने लगा है. मैं शायद मां की भूमिका सफलतापूर्वक नहीं निभा पाई. तुम दोनों का व्यवहार इस का प्रमाण है. फिर भी मैं कहूंगी कि मैं ने अपनी ओर से पूरा प्रयत्न किया था. नंदिनी की पढ़ाई में कभी कोई रुचि नहीं रही. फिर भी पीछे पड़ कर उसे स्नातक तक की पढ़ाई करवाई. कंप्यूटर कोर्स करवाया. एकदो जगह नौकरी भी लगवाई पर यह मेरा और उस का…या कहें हम दोनों की बदनसीबी है कि वह अब तक जीवन में व्यवस्थित नहीं हो सकी.

‘‘तुम्हारे लिए भी मैं ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार सबकुछ किया पर तुम ने अच्छीभली नौकरी छोड़ कर विवाह कर लिया और अब तुम और तुम्हारे पति प्रतीक दोनों बेकार बैठे हैं,’’ रचना का स्वर बेहद निरीह प्रतीत हो रहा था.

‘‘और ऐसे में आप ने हम सब को छोड़ कर जाने का फैसला ले लिया?’’ रम्या और नंदिनी ने समवेत स्वर में प्रश्न किया था.

‘‘यहां रह कर भी मैं तुम दोनों के लिए कहां कुछ कर पाई. वहां थोड़ा अधिक पैसा मिलेगा तो शायद मैं तुम लोगों की कुछ अधिक सहायता कर पाऊंगी. वैसे भी ऐसे अवसर कभीकभी ही मिलते हैं. वह तो सीशेल्स जैसे छोटे से द्वीप पर कोई जाना नहीं चाहता वरना तो मुझे यह भी मौका नहीं मिलता.’’

‘‘आप कब तक  जाएंगी, मम्मीजी?’’ प्रतीक ने प्रश्न किया था.

‘‘1 माह तो जाने में लग ही जाएगा, थोड़ा अधिक समय भी लग सकता है,’’ परिवार के अन्य सदस्यों को गहरी सोच में डूबे छोड़ कर रचना अपने कमरे में चली गई थीं.

आरामकुरसी पर पसर कर रचना देर तक शून्य में ताकती रही थीं. कमरे के अंधेरे में वह काल्पनिक आकृतियों को बनतेबिगड़ते देखती रही थीं. साथ ही अतीत की अनेक बातें उन के मानसपटल से टकराने लगी थीं.

‘क्या हुआ रचना? इस तरह सिर थामे क्यों बैठी हो?’ उस दिन उन की सहेली निमिषा ने रचना को आंखें मूंदे स्वयं में ही डूबे देख कर पूछा था.

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उत्तर में रचना ने अपनी आंखें खोल दी थीं. उन की डबडबाई आंखें लगातार बरसने लगी थीं.

‘क्या हुआ? कुशलमंगल तो है? मैं ने तुम्हें इस तरह स्वयं पर नियंत्रण खोते कभी नहीं देखा,’ निमिषा हैरान हो गई थी.

‘तुम स्वयं पर नियंत्रण की बात कर रही हो, मैं ने तो अपने सारे जीवन को अनियंत्रित होते देखा है.’

‘क्यों, क्या हुआ? कोई विशेष बात?’

‘सप्ताह भर से रम्या के फोन पर फोन आ रहे हैं. अपने पति के साथ यहीं हमारे पास रहना चाहती है,’ रचना धीमे स्वर में बोली थीं.

‘क्यों? प्रतीक का स्थानांतरण यहीं हो गया है क्या?’

‘किस का स्थानांतरण, निमिषा. वही हुआ जिस का डर था. फोन पर रम्या बता रही थी कि प्रतीक की नौकरी छूट गई है. मुझे तो पहले ही संदेह था कि वह नौकरी करता भी था या नहीं. अब वह नौकरी नहीं करना चाहता. व्यापार करेगा और व्यापार उसे मेरे अलावा करवाएगा कौन? एक और राज की बात बताऊं तुम्हें?’

‘क्या?’

‘प्रतीक खुद कोई बात नहीं करता. हर बात में रम्या को आगे करता है. पहले उसी की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर रम्या यहां अच्छीभली नौकरी छोड़ कर गुंइर चली गई. अब दिन में 2-3 बार फोन आता है. मैं सप्ताह भर से समझा रही हूं कि मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि उस की सहायता कर सकूं तो रोने लगी. बोली कि आप तो बैंक में अफसर हैं, क्या कर्ज नहीं ले सकतीं?’

‘नीरज भाई साहब क्या कहते हैं?’

‘वह क्या कहेंगे? आज तक कुछ कहा है जो अब कहेंगे? उन पर तो जीवन भर व्यापार का भूत सवार रहा. पर व्यापार में कमाया कम और गंवाया अधिक. अब तो उन का शरीर ही साथ नहीं देता. अस्थमा तो पुराना रोग है ही पर हर दिन कुछ न कुछ लगा ही रहता है. बेटीदामाद के आने के समाचार से भी उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता. वह तो, बस अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं.’

‘फिर तुम क्यों चिंता में घुली जा रही हो? आ रही है तो आने दो. उन दोनों के आने से भला कितना अंतर पड़ जाएगा,’ निमिषा ने समझाना चाहा था.

‘प्रश्न केवल भोजनकपड़े का नहीं है. व्यापार के लिए पूंजी कहां से जुटाऊं. ऊपर से मेरी दोनों बेटियों में बिलकुल नहीं पटती. नंदिनी को कोई वर अपने उपयुक्त लगता ही नहीं. संसार के सब से अधिक धनवान, सुदर्शन और प्रसिद्ध वर से ही विवाह करेगी वह. हम तो उस के विवाह की उधेड़बुन में खोए थे कि रम्या ने अपनी इच्छा से विवाह कर लिया. जगहंसाई न हो इसलिए हम ने परंपरागत रूप से विवाह करवा दिया. वर पक्ष से तो कोई औपचारिकता निभाने भी नहीं आया.’

‘विवाह के पहले तो प्रतीक बड़ी डींगें हांकता था. विवाह को 6 माह भी नहीं हुए कि नौकरी छूट गई. घर वालों ने घर से निकाल दिया. अब वह हमारी शरण में आना चाहते हैं. अब स्थिति यह है कि मेरी नौकरी न हो तो हमारा परिवार भूखों मर जाए,’ रचना अपनी रामकहानी सुनाती रही थी.

‘तुम्हारी समस्या तो वास्तव में विकट है. मैं तो केवल सलाह दे सकती हूं पर उस पर अमल तो तुम को ही करना है. मैं तुम्हारे स्थान पर होती तो कब की भाग खड़ी होती. तनिक सोचो, यदि तुम उन्हें छोड़ कर चली जाओ तो क्या वे भूखे मरेंगे? अपना पेट भरने के लिए तो हाथपैर हिलाएंगे ही न,’ निमिषा ने बात सच कही थी पर रचना को लगा कि उस की सलाह मानने की शक्ति उस में नहीं थी.

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‘तुम ठीक कहती हो. मेरी नियति ही ऐसी है. कालिज में प्रवेश लेते ही मातापिता चल बसे. अपने छोटे भाई और स्वयं को व्यवस्थित करने में मैं ने कठिन परिश्रम किया. संतोष इसी बात का है कि उस का जीवन पूरी तरह से व्यवस्थित है, व्यावसायिक रूप से भी और पारिवारिक तौर पर भी. उसे देख कर बड़ी संतुष्टि मिलती है. पर मुझे तो विवाह के बाद भी चैन नहीं मिला. मुझे तो लगता है कि मेरी दोनों बेटियां अभिशाप बन कर मेरे जीवन में आई हैं. थकीहारी घर पहुंचती हूं तो नंदिनी एक प्याली चाय को भी नहीं पूछती. सर्वगुण संपन्न वर न जुटा पाने के लिए शायद वह मुझे ही दोषी समझती है. सदा मुंह फूला ही रहता है उस का.’

‘भूल जाओ यह सब, रचना. अपनी ओर से तुम ने दोनों बेटियों के लिए कर्तव्य पूरा कर दिया. हो सके तो उन पर जिम्मेदारी डाल कर उन में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करो. कभीकभी परिस्थितियां स्वयं बदलने लगती हैं अत: प्रतीक्षा करो.’

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