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लेखिका-दिव्या साहनी

नीरजाने शिखा को अपने घर के गेट के पास कार से उतरते देखा तो उस की मुट्ठियां कस गईं. उन का घर दिल्ली की राजौरी गार्डन कालोनी में था जहां पुराने होते हुए मकानों में से कुछ को तोड़ कर नए फ्लोर बना कर बेचे जा रहे थे और सड़क पर आ जा रहे लोगों को पहली मंजिल से आराम से देखा जा सकता था. आजकल सड़कों पर सन्नाटा सा ज्यादा रहता है, इसलिए शिखा को कार से उतरते ही नीरजा ने देख लिया.

‘‘आजकल तेरे पति और शिखा के बीच चल रही आशिकी की औफिस में खूब चर्चा

हो रही है. तुम जल्दी से कुछ करो, नहीं तो

एक दिन पछताओगी,’’ अपने पति राजीव की सहयोगी आरती की इस चेतावनी को नीरजा पिछले 15 दिनों से लगातार याद कर रही थी.

राजीव की इस प्रेमिका से नीरजा 3 दिन पहले एक समारोह में मिली थी. वहीं पर बड़ा अपनापन जताते हुए नीरजा ने शिखा को अपने घर रविवार को लंच पर आने का निमंत्रण दिया था.

शिखा के लिए दरवाजा खोलने से पहले उस ने घर का मुआयना किया. सोफा चमचमा रहा था. सौफे पर मैचिंग कुशन तरतीब से लगे थे. दीवारों पर महंगी तो नहीं पर सुंदर पेंटिंग्स थीं. एसी चल रहा था और उस ने पंखा बंद कर रखा था ताकि कोई आवाज पंखें की घरघर में दब न जाए. वह जानती थी कि उसे आज क्या करना है.

शिखा की बेचैनी भरे सहमेपन को नीरजा ने दूर से ही भांप लिया था. घंटी का बटन दबाने से पहले शिखा को बारबार हिचकिचाते देख वह मुसकराई और फिर से दरवाजा खोलने चल पड़ी.

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