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जब से जानकी बूआ ने शेफाली को यह बतलाया कि उस की गैरमौजूदगी में उस के पापा ने दूसरी शादी की है तब से उस का मन यह सोच कर बेचैन हो रहा था कि जब वह घर वापस जाएगी तो वहां एक ऐसी अजनबी औरत को देखेगी जो उस की मां की जगह ले चुकी होगी और जिसे उस को ‘मम्मी’ कह कर बुलाना होगा.

पापा की शादी की बात सुन शेफाली के अंदर विचारों के झंझावात से उठ रहे थे.

मम्मी की मौत के बाद शेफाली ने पापा को जितना गमगीन और उदास देखा था उस से ऐसा नहीं लगता था कि वह कभी दूसरी शादी की सोचेंगे. वैसे भी मम्मी जब जिंदा थीं तो शेफाली ने उन को कभी पापा से झगड़ते नहीं देखा था. दोनों में बेहद प्यार था.

मम्मी को कैंसर होने का पता जब पापा को चला तो उन्हें छिपछिप कर रोते हुए शेफाली ने देखा था.

यह जानते हुए भी कि मम्मी बस, कुछ ही दिनों की मेहमान हैं पापा ने दिनरात उन की सेवा की थी.

इन सब बातों को देख कर कौन कह सकता था कि वह मम्मी की बरसी का भी इंतजार नहीं करेंगे और दूसरी शादी कर लेंगे.

अब जब पापा की दूसरी शादी एक कठोर हकीकत बन चुकी थी तो शेफाली को अपने दोनों छोटे भाईबहन की चिंता होने लगी थी. बहन मानसी से कहीं अधिक चिंता शेफाली को अपने छोटे भाई अंकुर की थी जो 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

मम्मी को कैंसर होने का जब पता चला था तो शेफाली बी.ए. फाइनल में थी और बी.ए. करने के बाद बी.एड. करने का सपना उस ने देखा था. लेकिन मम्मी की असमय मृत्यु से शेफाली का वह सपना एक तरह से बिखर गया था.

शेफाली बड़ी थी. इसलिए मम्मी की मौत के बाद उस को लगा था कि छोटे भाईबहन के साथसाथ पापा की देखभाल की जिम्मेदारी भी उस के कंधों पर आ गई थी और उस ने भी अपने दिलोदिमाग से इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए खुद को तैयार कर लिया था.

मगर शेफाली को हैरानी उस समय हुई जब मम्मी की मौत के 3-4 महीने बाद ही पापा ने उस को खुद ही बी.एड. करने के लिए कह दिया.

शेफाली ने तब यह कहा था कि अगर वह भी पढ़ाई में लग गई तो घर को कौन देखेगा तो पापा ने कहा, ‘घर की चिंता तुम मत करो, यह देखना मेरा काम है. तुम अपने भविष्य की सोचो और अपनी आगे की पढ़ाई शुरू कर दो.’

‘मगर यहां बी.एड. के लिए सीट का मिलना मुश्किल है, पापा.’

‘तो क्या हुआ, तुम्हारी जानकी बूआ जम्मू में हैं. सुनने में आता है कि वहां आसानी से सीट मिल जाती है. मैं जानकी से फोन पर इस बारे में बात करूंगा. वह इस के लिए सारा प्रबंध कर देगी,’ पापा ने शेफाली से कहा था.

शेफाली तब असमंजस से पापा का मुख ताकती रह गई थी, क्योंकि ऐसा करना न तो घर के हालात को देखते हुए सही था और न ही दुनियादारी के लिहाज से. लेकिन पापा तो उस को जानकी बूआ के पास भेजने का मन बना ही चुके थे.

शेफाली की दलीलों और नानुकुर से पापा का इरादा बदला नहीं था और हमेशा दूसरों के घर की हर बात पर टीकाटिप्पणी करने वाली जानकी बूआ को भी पापा के फैसले पर कोई एतराज नहीं हुआ था. होता भी क्यों? शायद पापा जो भी कर रहे थे जानकी बूआ के इशारे पर ही तो कर रहे थे.

उसे लगा सबकुछ पहले से ही तय था. बी.एड. की पढ़ाई तो जैसे उस को घर से निकालने का बहाना भर था.

अब सारी तसवीर शेफाली के सामने बिलकुल साफ हो चुकी थी. शायद मम्मी की मौत के तुरंत बाद ही गुपचुप तरीके से पापा की दूसरी शादी की कोशिशों का सिलसिला शुरू हो गया था. शेफाली को पक्का यकीन था कि इस में जानकी बूआ ने अहम भूमिका निभाई होगी.

मम्मी की मौत पर जानकी बूआ की आंखें सूखी ही रही थीं. फिर भी छाती पीटपीट कर विलाप करने का दिखावा करने के मामले में बूआ सब से आगे थीं.

एक तो वैसे भी जानकी बूआ का रिश्ता दिखावे का था. दूसरे, मम्मी से बूआ की कभी बनी न थी. उन के रिश्ते में खटास रही थी. इस खटास की वजह अतीत की कोई घटना हो सकती थी. इस के बारे में शेफाली को कोई जानकारी न थी.

लगता तो ऐसा है कि मम्मी के कैंसर होने की बात जानते ही जानकी बूआ ने दोबारा भाई का घर बसाने की बात सोचनी शुरू कर दी थी. तभी तो जबतब इशारों ही इशारों में बूआ अपने अंदर की इच्छा यह कह कर जाहिर कर देती कि औरत के बगैर घर कोई घर नहीं होता. पापा ने भी शायद दोबारा शादी के लिए जानकी बूआ को मौन स्वीकृति दी होगी. तभी तो योजनाबद्ध तरीके से सारी बात महीनों में ही सिरे चढ़ गई थी.

चूंकि मैं बड़ी व समझदार हो गई थी. मुझ से बगावत का खतरा था इसलिए मुझे बी.एड. की पढ़ाई के बहाने बड़ी खूबसूरती से घर से बाहर निकाल दिया गया था.

पापा की दूसरी शादी करवा कर वापस आने के बाद जानकी बूआ शेफाली के साथ ठीक से आंख नहीं मिला पा रही थीं और तरहतरह से सफाई देने की कोशिश कर रही थीं.

किंतु अब शेफाली को बूआ की हर बात में केवल झूठ और मक्कारी नजर आने लगी थी इसलिए उस के मन में बूआ के प्रति नफरत की एक भावना बन गई थी.

फूफा शायद शेफाली के दिल के हाल को बूआ से ज्यादा बेहतर समझते थे इसलिए उन्होंने नपेतुले शब्दों में उस को समझाने की कोशिश की थी, ‘‘मैं तुम्हारे दिल की हालत को समझता हूं बेटी, मगर जो भी हकीकत है अब तुम्हें उस को स्वीकार करना ही होगा. नए रिश्तों से जुड़ना बड़ा मुश्किल होता है लेकिन उस से भी मुश्किल होता है पहले वाले रिश्तों को तोड़ना. इस सच को भी तुम्हें समझना होगा.’’

घर जाने के बारे में शेफाली जब भी सोचती नर्वस हो जाती. उस के हाथपांव शिथिल पड़ने लगते. कैसा अजीब लगेगा जब वह मम्मी की जगह पर एक अजनबी और अनजान औरत को देखेगी? वह औरत कैसी और किस उम्र की थी, शेफाली नहीं जानती मगर वह उस की सौतेली मां बन चुकी थी, यह एक हकीकत थी.

‘सौतेली मां’ का अर्थ शेफाली अच्छी तरह से जानती थी और ऐसी मांओं के बारे में बहुत सी बातें उस ने सुन भी रखी थीं. अपने से ज्यादा उसे छोटे भाईबहन की चिंता थी. वह नहीं जानती थी कि सौतेली मां उन के साथ कैसा व्यवहार कर रही होंगी.

जानकी बूआ शेफाली से कह रही थीं कि वह एक बार घर हो आए और अपनी नई मम्मी को देख ले लेकिन शेफाली ने बूआ की बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि अब उन की अच्छी बात भी उसे जहर लगती थी. इस बीच पापा का 2-3 बार फोन आया था पर शेफाली ने उन से बात करने से मना कर दिया था.

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