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लेखिका- डा. सरस्वती अय्यर

 मगर विद्या सोई नहीं थी. अमित के तिरस्कारपूर्ण व्यवहार और अपमान से उस का दिल रो रहा था. पर वह समझ चुकी थी कि अब कुछ नहीं होने वाला है, उसे जल्दी कोई निर्णय लेना ही होगा. जो आदमी अपनी पत्नी के प्यार और समर्पण को नहीं समझ पाया, उस के मन में अपने अनदेखेअनजन्मे बच्चे के लिए मोह कहां से जागेगा, ऐसे निर्मोही के साथ जीवन बिताने का क्या मतलब? विद्या ने एक पल की भी देर न की. उस ने अपने पिता को फोन किया. उन्हें सारी स्थिति समझई और तुरंत वहां आ कर उसे ले जाने को कहा. मां और पिताजी के आने तक वह अपना सामान पैक चुकी थी.

अचानक समधीसमधन को आया देख कर विद्या के सासससुर घबरा गए. तभी सामने से बड़े ही बेफिक्र अंदाज में अमित ने कमरे में प्रवेश किया. सब को देख कर वह सकपका कर वहीं खड़ा हो गया. विद्या खुद को काबू में न रख सकी. अमित के सामने जा कर उसे एक थप्पड़ जड़ दिया.

इस से पहले कि वह कुछ समझता विद्या के पिता ने कड़े शब्दों में अपने समधी से कहा, ‘‘गलती सिर्फ आप के बेटे की ही नहीं है, अपने बेटे की सारी करतूतें जानते हुए भी आप ने मेरी लड़की से उस की शादी करवाई. अब भी मैं आप को एक मौका देता हूं. अगर आप का बेटा अपनी भूल मान कर एक हफ्ते में मेरी बेटी को लेने आता है तो ठीक है वरना 10 दिनों में तलाक का नोटिस आप को मिल जाएंगा और मुआवजे की मांग की लिस्ट,’’ और वे विद्या का सूटकेस ले कर बाहर निकल गए.

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