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लेखिका- डा. सरस्वती अय्यर

 अवसर मिलते ही उन्होंने विजय से विद्या के साथ शादी की बात की. विजय ने धैर्यपूर्वक उन की बातें सुनीं, फिर एक गहरी सांस ले कर बड़ी ही शांति से जवाब दिया, ‘‘मां किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले अच्छी तरह से सोचविचार कर लो. मैं पहले ही गलत निर्णय ले कर पछता चुका हूं. अब तुम जैसा ठीक समझे. तुम्हारी हर बात मुझे स्वीकार है पर एक बार विद्या के मन की भी थाह ले लो. अगर उसे कोई विरोध नहीं है तो मेरी तरफ से भी समझे हां ही है.’’

बेटे की तरफ से हरी झंडी मिलते ही लक्ष्मी देवी विद्या के मातापिता से मिलीं. लक्ष्मी देवी का प्रस्ताव सुन कर उन की खुशी से आंखें भर आईं. उन की सहमति पा कर लक्ष्मी देवी का उत्साह दोगुना हो गया. अब वे देर नहीं करना चाहती थीं. शाम को विद्या के मातापिता को विद्या और वृंदा सहित घर आने का निमंत्रण दे कर वे बाजार की ओर निकल पड़ीं. टैलीफोन पर विजय को इस सहमति की सूचना देना वे न भूलीं.

मगर विजय एक बार जीवन में धोखा खा चुके थे. इस बार वे जल्दीबाजी नहीं करना चाहते थे. वे विद्या से मिल कर इस बारे में बात करना चाहते थे. कुछ भी निर्णय लेने से पहले विद्या से मिलना जरूरी था. कुछ सोच कर उन्होंने अपने सैक्रेटरी को बुलाया. उसे कुछ निर्देश दे कर वे बाहर निकले और विद्या को मोबाइल पर फोन किया, पर उस का फोन औफ था. उन्होंने विद्या के औफिस नंबर पर फोन किया तो पता चला कि आज विद्या का टूरनामैंट है. आज वे शिवाजी इंडोर स्टेडियम में हैं.

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