कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘आज संडे को सुबह सवेरे ही अपने पति प्रणय को फोन में घुसे देख मैं ने उन्हें शरारतभरे अंदाज में अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘यह सुबहसुबह मोबाइल में क्या देखने लग गए तुम?’’ ‘‘अरे, कुछ नहीं, वह मेरे बौस का मैसेज है. अरजैंट मीटिंग रखी है, जाना पड़ेगा मु झे,’’ कह कर वे झटके से उठ कर बाथरूम में घुस गए. बाहर निकल कर कहने लगे कि नाश्ता नहीं करूंगा, टाइम नहीं है, इसलिए जल्दी से बस चाय बना दो. प्रणय के औफिस जाने की सुन कर वैसे ही मेरा चेहरा उतर चुका था, सो मैं भुनभुनाते हुए किचन में घुस गई. ‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था इस संडे तुम पूरा दिन मेरे साथ बिताओगे?’’ किचन से ही पलट कर मैं ने पूछा, ‘‘कहा था न कि तुम मु झे अघोरा मौल शौपिंग कराने ले चलोगे. हम फिल्म देखेंगे, बाहर ही डिनर करेंगे यानी तुम ने सब झूठ कहा,’’ मैं ने मुंह बनाया. प्रणय हंस पड़ा, ‘‘अरे, नहीं बाबा... मैं ने तुम से कोई झूठ नहीं कहा. सच कहता हूं, मेरा भी मन था तुम्हारे साथ टाइम स्पैंड करने का.

लेकिन बौस ने अरजैंट मीटिंग रख दी तो क्या करें,’’ प्रणय ने बेचारगी दिखाते हुए कहा, तो मु झे और गुस्सा आ गया कि कैसा इंसान है यह. बोल नहीं सकता कि छुट्टी के दिन नहीं आ सकता, घर में भी काम होते हैं. ‘‘मन तो करता है तुम्हारे उस खूंसट बौस को भरभर कर गालियां दूं. अरे, खुद की बीवी तो है नहीं तो क्या जाने वह दूसरों की फिलिंग्स को. बोलते क्यों नहीं कि तुम कोई गुलाम नहीं हो उस के, जो जब बुलाए जाना पड़ेगा.’’ ‘‘गुलाम तो मैं तुम्हारा हूं माई सोलमेट. लेकिन रोटी का सवाल है न बाबा. नहीं कमाऊंगा तो खाऊंगा क्या? फिर मु झे बीवी के टुकड़ों पर पलना पड़ेगा,’’ बोल कर प्रणय हंसा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...