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अनिताजी बोलीं, ‘‘आयुष और आशी को याद कर के मैं बेचैन हूं. अकारण ही वे मासूम आप दोनों की लड़ाई में पिस कर रह गए हैं. जब तुम दोनों ने अलग होने का निर्णय ले ही लिया है तो फिर ये इस फालतू फसाद को क्यों तरजीह दी जा रही है? रहा बच्चों की कस्टडी का प्रश्न तो उन की मरजी के अनुसार वहीं रहने दीजिए जहां वे चाहें. ऐसे भी परिवार जब टूटते हैं तो ज्यादा प्रभावित बच्चे ही होते हैं. ऐसी अति महत्त्वाकांक्षिनी लड़कियां शादी की मर्यादा ज्यादा दिनों तक नहीं रख पाती हैं. उस समय हम ने तुम्हें कितना समझाया था, लेकिन उस के विश्व सुंदरी के ताज की चकाचौंध ने तुम्हारी सोचनेसमझने की शक्ति ही हर ली थी. फिर जिस की मां ने ही इस रिश्ते की पावनता का मान नहीं रखा, वह अपनी बेटी का घर बसाने के लिए कुछ करेगी उस से ऐसी उम्मीद रखने का कोई औचित्य ही नहीं है... अपने बचपन की संगिनी अनन्या का मन भी तो तुम ने कितनी निर्दयता से तोड़ा था, साथ में हमारे सपनों में भी तो तुम ने मायूसी भर दी थी. वह तुम्हारा इंतजार करती रही और तुम सेहरा पहन कर किसी और के नूर बन गए.’’

मां चुप बैठी रहीं. जब गौतम ने कुछ नहीं कहा तो उन्होंने फिर कहा, ‘‘जो भी हुआ उसे वापस तो मोड़ा नहीं जा सकता. अब कल की तारीख पर कोर्ट में सब कुछ पर निर्णय हो जाना चाहिए. जो भी वह चाहती है दे कर रफादफा कर दी. अब और जिल्लतें मैं बरदाश्त नहीं कर सकती,’’ कहते हुए अनिताजी का स्वर अवरुद्ध हो गया.

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