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छुट्टी की मंजूरी मिलते ही तुरंत स्कूल के गेट तक पहुंच गई. तभी न जाने कहां से भटकता आ गया. बोला, ‘‘घर जाना है क्या? आइए, मैं छोड़ देता हूं,’’ और फिर अपनी बाइक उस के आगे ला कर खड़ी कर दी.

उसे खुद घर जाने की जल्दी थी. कहीं देर हो गई सवारी ढूंढ़ने के चक्कर में तो विवेक फिर से गुस्से से लालपीला हो जाएगा.

‘‘क्या सोच रही हैं?

आज जल्दी कैसे आ गईं, स्कूल से बाहर?’’

तबीयत ठीक नहीं है.

‘‘अरे भाभी, अपना खयाल रखा करो,’’ बाइक स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘आप एकदम भोली हो... वहां तो भाई गुलछर्रे उड़ा रहा होगा और आप यहां अपने को कितना व्यस्त रखती हो.’’

‘‘क्या गुलछर्रे उड़ाते होंगे बेचारे... न ढंग का खाना, न देखभाल. घर से दूर हमारे लिए ही तो जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं... चार पैसे बचेंगे तो हमारे बच्चों के भविष्य के ही काम आएंगे.’’

‘‘कर दी न वही घिसीपिटी बात... वहां नाइट क्लब होते हैं... खूब शराब और शबाब का दौर चलता है... वहां किसे अपनी बीवी याद आएगी.’’

फिर उस का मन हुआ कि वह छोटू को बता दे कि उस का पति घर में कितनी बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा है... इन सब चक्करों से वह कोसों दूर है वरना आज उसे यों झूठ का सहारा ले कर आधे दिन की छुट्टी ले कर घर नहीं भागना पड़ता... पत्नी पति के हर परिवर्तन को झट भांप लेती है. मगर उस ने छोटू की बातों को कोई तवज्जो नहीं दी.

‘‘आओ चाय पी कर जाना,’’ उस ने अपने घर के गेट के आगे उतर कर छोटू से औपचारिकता निभाने को पूछा.

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