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कुहरे में लिपटी एक नई सुबह नए जीवन में नूपुर का स्वागत कर रही थी. खेतों की तरफ किसान राग मल्हार गाते चले जा रहे थे. गेहूं और सरसों की फसलें फरवरी की इस गुलाबी ठंड में हलकीहलकी बहती शीतल, सुगंधित बयार के स्पर्श को पा कर खिलखिलाने लगी थीं. नूपुर की आंखें नींद से मुंदी जा रही थीं. इन सब के बीच 2 मन आपस में चुपकेचुपके कार की पहली सीट पर लगे बैक मिरर में एकदूसरे को देख आंखों ही आंखों में बतियाने  का प्रयास कर रहे थे. शरीर थकान से टूट रहा था, विदाई का मुहूर्त सुबह का ही था. ससुराल में पहला दिन था उस का. टिटपुट रीतिरिवाजों के बाद उसे कमरे में बैठा दिया गया था. उस की आंखें उनींदी हो रही थीं. कितने दिन हो गए थे उसे मन भर सोए हुए. सोती भी कैसे घर रिश्तेदारों से जो भरा हुआ था.

‘‘नूपुर. सो जा वरना चेहरा सोयासोया लगेगा. फोटो अच्छे नहीं आएंगे,’’ कहते सब जरूर थे पर कैसे? इस बात का किसी के पास कोई जवाब नहीं था. जिसे देखो वही हाथ में ढोलक ले कर उस के सिर पर आ कर बैठ जाता.

‘‘इन्हें देखो महारानी की खुद की शादी है और यह फुर्रा मार कर सो रही हैं. अरे भाई शादीब्याह रोजरोज थोड़े होता है. अभी मजे ले लो फिर तो बस यादें ही रह जाती हैं.’’

मन मार कर उसे भी शामिल होना ही पड़ता. अभी तो ससुराल के रीतिरिवाज बाकी थे.

उस ने खिड़की के बाहर झंक कर देखा, सड़कें सो रही थीं और वह जाग रही थी. दबेदबे पांवों से वह हौलेहौले एक नई जिंदगी में प्रवेश कर रही थी. एक ही मासमज्जा से बने हर इंसान की देह में एक अलग खुशबू होती है जो उसे दूसरों से अलग करती है. शायद घरों की भी अपनी एक देह और एक अलग खुशबू होती है जो उन्हें दूसरों से अलग करती है. नूपुर इस खुशबू से बिलकुल अपरिचित और अनजान थी. उस के घर खुशबू उस के पीहर से बिलकुल अलग थी जिसे उसे अपनाना और अपना बनाना था.

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