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मुसकान फफकफफक कर रो रही थी. ऐशा भी आज उसे खुल कर रो  लेने देना चाहती थी. फिर भी यह चाहती थी कि वह अपनी मां से बात करे, उस की खामियां न खोजे. ‘‘तुम तो उफनती नदी सी हो गई हो, जिस का बहाव सिर्फ तबाही मचा सकता है. मुसकान एक बार शांत हो जाओ वरना न जाने अपनी मां से क्या भलाबुरा कह बैठोगी आज. फिर मुंह से निकली बात कभी वापस तो नहीं ली जाती न? तुम्हारे अंदर के ज्वार को एक बार शांत हो जाने देना जरूरी है. मुसकान तुम कहती जाओ मैं सुनती जाऊंगी बगैर कोई उपदेश दिए,’’ ऐशा बोली.

मुसकान जब रो कर थक जाती फिर कहने लगती. अंत में जब वह खास मुद्दे पर आई तो ऐशा गहरे सोच में पड़ गई.

‘‘मुसकान पर यह तो हर मांबाप की ख्वाहिश होती है कि वह अपने बच्चों को विवाहित देखे, उन की संतान को देखे. तुम क्यों ताउम्र कुंआरी रहना चाहती हो? क्यों संतान पैदा नहीं करना चाहती? तुम तो अपने प्यार की बगिया सजा सकती हो. देखो रोहित है न तुम्हारे जीवन में, तुम्हारी हां होने की राह देख रहा है बस, उस के मातापिता भी तुम से मिल चुके हैं, तुम्हें कितना पसंद करते हैं. उस से विवाह कर तुम दोनों रोज साथ में दफ्तर आनाजाना प्रेम की फुहारों का आनंद लेना. यह तो तुम्हारा प्रेमविवाह होगा. न कोई बंदिश न ही कोई घुटन.’’

‘‘हां लेकिन अपनी मां का क्या करूं? कहती हैं अरेंज्ड मैरिज करनी है वरना लोग क्या कहेंगे? आज भी उन्हें रिश्तेदारों और समाज की पड़ी है, मु  झ से कोई वास्ता नहीं. भैया की तो अरेंज्ड मैरिज ही थी, क्या परिणाम निकला? पापा व हमारी विधवा बूआ ने उसे व उस की पत्नी को कभी एक न होने दिया. भैया और भाभी उन्हें अपने साथ कैसे रखते जब वे बातबात पर भाभी पर कोई न कोई तोहमत लगाते. हम दोनों भाईबहन कभी उन के सामने अपनी बात तो रख ही न पाए. आखिर भाभी ने ही भैया से तलाक ले लिया. अब भैया ने अपने साथ काम करने वाली लड़की से दूसरी शादी कर ली है और मेरे मातापिता से अलग घर ले कर रह रहे हैं.

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