कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

जया नहा धो कर तैयार हुई, माथे तक घूंघट किया, फिर धीरेधीरे सीढि़यां उतर कर नीचे आ गई. आते ही मम्मीजी के पैर छूने के लिए जैसे ही झुकी, वैसे ही मम्मीजी ने हाथ पकड़ कर ऊपर उठा लिया.

‘‘पैर छूना पुरानी बातें हैं, दिल में इज्जत होनी चाहिए, इतना ही काफी है और ये घूंघट क्यों बना लिया है?’’ और मम्मीजी ने जया के सिर से घूंघट उठा दिया.

‘‘मेज पर नाश्ता लग गया है, सब लोग तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं. चलो, नाश्ता कर लो,’’  मम्मीजी ने प्यार से कहा.

जया ने अपनी भाभियों को ससुर व जेठ के साथ बराबर बैठ कर खातेपीते नहीं देखा था. पहले तो वह थोड़ी सी झिझकी फिर जा कर एक कुरसी पर बैठ गई.

पापाजी ने एक पकौड़ी का टुकड़ा मुंह में रखा और कहने लगे कि शंभू ने पकौडि़यां ठंडी कर दी हैं.

जया कुरसी से उठी और पकौडि़यों की प्लेट किचन में ले गई. कड़ाही आंच पर चढ़ा कर पकौडि़यां गरम कर लाई. पापाजी खुश हो गए.

‘‘घनश्याम घंटा भर पहले पानी फ्रिज से निकाल कर जग भर के रख देता है, जब तक खाओपियो पानी गरम होने लगता है,’’  विपिन ने कहा.

जया ने पानी का जग उठाया, उस का पानी बालटी में उड़ेल कर फ्रिज से बोतल निकाल कर जग में ठंडा पानी भर मेज पर रख दिया.

‘‘भाभी, इतने नौकर घूम रहे हैं, किसी नौकर को आवाज दे देतीं, आप खुद क्यों दौड़ रही हैं?’’ विभा ने भौंहें सिकोड़ कर कहा.

सुधीर पहले दिन से ही जया को मिडिल क्लास मेंटैलिटी का मान कर कुपित था और आज जया के बारबार खुद उठ कर नौकरानी की तरह भागने से मन ही मन क्रोधित हो रहा था. अत: विभा की बात समाप्त करते ही सुधीर फूट पड़ा, ‘‘अपने घर में  नौकरचाकर देखे हों तो नौकरों से काम लेना आए.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...