अ पने दोस्त राजीव चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की खबर सुन कर मेरे मन में पहला विचार उभरा कि अपनी जिंदगी में हमेशा अव्वल आने की दौड़ में बेतहाशा भाग रहा मेरा यार आखिर जबरदस्त ठोकर खा ही गया.

रात को क्लिनिक कुछ जल्दी बंद कर के मैं उस से मिलने नर्सिंग होम पहुंच गया. ड्यूटी पर उपस्थित डाक्टर से यह जान कर कि वह खतरे से बाहर है, मेरे दिल ने बड़ी राहत महसूस की थी.

मुझे देख कर चोपड़ा मुसकराया और छेड़ता हुआ बोला, ‘‘अच्छा किया जो मुझ से मिलने आ गया पर तुझे तो इस मुलाकात की कोई फीस नहीं दूंगा, डाक्टर.’’

‘‘लगता है खूब चूना लगा रहे हैं मेरे करोड़पति यार को ये नर्सिंग होम वाले,’’ मैं ने उस का हाथ प्यार से थामा और पास पड़े स्टूल पर बैठ गया.

‘‘इस नर्सिंग होम के मालिक डाक्टर जैन को यह जमीन मैं ने ही दिलाई थी. इस ने तब जो कमीशन दिया था, वह लगता है अब सूद समेत वसूल कर के रहेगा.’’

‘‘यार, कुएं से 1 बालटी पानी कम हो जाने की क्यों चिंता कर रहा है?’’

‘‘जरा सा दर्द उठा था छाती में और ये लोग 20-30 हजार का बिल कम से कम बना कर रहेंगे. पर मैं भी कम नहीं हूं. मेरी देखभाल में जरा सी कमी हुई नहीं कि मैं इन पर चढ़ जाता हूं. मुझ से सारा स्टाफ डरता है...’’

दिल का दौरा पड़ जाने के बावजूद चोपड़ा के व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया था. वह अब भी गुस्सैल और अहंकारी इनसान ही था. अपने दिल के दौरे की चर्चा भी वह इस अंदाज में कर रहा था मानो उसे कोई मैडल मिला हो.

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