कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

दोनों ही यंत्रणा और दुख  झेल रहे थे. कभी विद्रोही तो कभी हताश हो उठते. जीवन

के कुरूप यथार्थ का सामना कर रहे थे दोनों. कुछ दिन पहले वाली घटना से भी वे बहुत डर गए थे.

‘‘यहां रहना खतरे से खाली नहीं. कहीं और बसते हैं.’’

‘‘दूसरा ठिकाना ढूंढ़ लेंगे, लेकिन अभी कुछ दिन तो यहीं रहना होगा. महीनेभर का किराया दिया है. फिर फ्लैट खाली करने से पहले 1 महीने का नोटिस भी जरूरी है.’’

‘‘जयश्री ऐसे में किराए की फिक्र नहीं की जाती. हमें तुरंत नया ठिकाना ढूंढ़ना होगा.’’

मानवतावादी दृष्टिकोण के अभाव में मुख्यधारा से अलग किया तबका कितना दुख  झेलता है. यह फ्लैट उन के लिए कई मामलों में एक सुरक्षित स्थान था. हजारों, लाखों फ्लैट के मालिक खुद वहां नहीं रहते और जातिधर्म के नाम पर किराएदारों की तहकीकात भी नहीं करते. उन्हें तो बस पैसा चाहिए और अपना घर सलामत. लेकिन रातदिन गुंडों के साए में जीना मुश्किल था. क्या पता फिर कभी आ धमकें... इसलिए औनलाइन घर की तलाश शुरू हो गई.

कुछ ही दिनों में दोनों ने फिर घर बदल लिया. इस बार सोसाइटी में न जा कर आबादी वाले एरिया में किसी घर में खाली सिंगल रूम सैट को अपना ठिकाना बनाया. वैरिफिकेशन, एडवांस पेमैंट और सिक्यूरिटी की सारी औपचारिकताएं और शर्तें एजेंट के माध्यम से पूरी हो गईं.

रमन सोचता कि एक ओर उस के पास रखी पुस्तकों में मार्क्स, लेनिन, गांधी, सुकरात जैसे नाम हैं, उन की समानतावादी नीति है, दूसरी तरफ अमानवतावादी दृष्टिकोण. वह नफरत करे तो किस से... क्या ये किताबें  झूठी हैं या समाज ने इन्हें पढ़ा नहीं और अगर पढ़ा तो गुना क्यों नहीं? यह सोचतेसोचते देर रात उस की आंख लग गई.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...