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कुम्हार का गधा अपनी पीठ पर बो?ा ढोता है. लेकिन पीठ से वह बो?ा उतरते ही गधा बो?ारहित हो जाता है क्योंकि वह वजनरूपी बो?ा था. मगर कुम्हार के मन का बो?ा उतरने का नाम ही नहीं लेता. लगता है वह तो उस के साथ उस की अंतिम सांस तक रहने वाला है. ऐसे ही हर आदमी अपने मन में कोई न कोई बो?ा लिए जीता है जो उस के साथ अंतकाल तक रहता है.

अभिषेक के पापा का चूडि़यों का छोटा सा बिजनैस था. उस का बड़ा भाई आशुतोष इस बिजनैस में उन का हाथ बंटाता था. अभिषेक पढ़ने में होनहार था, इसलिए यह तय हुआ कि उच्च शिक्षा के लिए उसे किसी बड़े शहर भेजा जाए.

इंटर करने के बाद अभिषेक का एडमिशन कुछ डोनेशन दे कर दक्षिण भारत के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में करा दिया गया. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अभिषेक को उम्मीद थी कि उसे जल्द ही कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी. मगर उस का न तो कहीं प्लेसमैंट हुआ और न ही और कहीं जल्दी नौकरी लगी.

इस समय तक आशुतोष ने अपने पापा के बिजनैस पर पूरी पकड़ बना ली थी और वह यह बिलकुल नहीं चाहता था कि अभिषेक घर वापस आ कर उस के बिजनैस में कोई दखल दे, हिस्से की बात तो बहुत दूर. अभिषेक के पापा अनुभवी थे. वे बखूबी जानते थे घरघर मटियालेचूल्हे. इसलिए उन्होंने भाइयों को आपसी अनबन से बचाने के लिए एक रिश्तेदार की सिफारिश अभिषेक से कोलकाता की एक फर्म में नौकरी पर लगवा दिया. वह खुशीखुशी कोलकाता के लिए रवाना हो गया. पापा ने चैन की सांस ली. आशुतोष तो मन ही मन खुश हो रहा था कि चलो बला टली.

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