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भाई की यह कलेजा चीरने वाली बात सुन अभिषेक को तो मानो सांप सूंघ गया. वह कुछ देर यों ही बैठा रहा. वह सोचने लगा कि उस की कोई कीमत नहीं. इंजीनियरिंग की डिगरी ले कर भी वह चूडि़यों के डब्बे घर से दुकान और दुकान से घर पर ढोता रहता है. उस से अच्छी तो उस की पत्नी है.

अभिषेक के पापा का आशुतोष से कुछ कहने का तो मन नहीं था लेकिन घर की बात घर में ही रहे, इसलिए उन्होंने आशुतोष से कह कर अभिषेक के लिए 8 हजार मासिक मेहनताना बंधवा दिया. अभिषेक ने डाकखाने और जीवन बीमे के एजेंट का काम भी शुरू कर दिया लेकिन इस काम के लिए वह इतना व्यावहारिक नहीं था. इसी बीच शीतल ने 2 जुड़वां बच्चों को जन्म दिया. एक लड़का, एक लड़की.

अभिषेक को अब एक नया काम मिल गया. वह काम था दोनों बच्चों को पालने का. शीतल कालेज जाती और कोचिंग क्लासेज लेती, बेचारा अभिषेक बच्चों को संभालता और घर के काम भी करता.

मगर धीरेधीरे अभिषेक के मन में यह बात गहराने लगी कि इस दुनिया में उस की कोई कीमत नहीं है. उस की इज्जत न घर में है और न बाहर. उस पर इंजीनियर होने का ठप्पा लगा हुआ था लेकिन वह अपने भाई का नौकर बन कर रह गया था. उधर उस के मन में बैठा पितृसत्तात्मक समाज उसे उलाहना देता कि अभिषेक तू अपने भाई का ही नौकर नहीं, अपनी जोरू का भी गुलाम है. तु?ो धिक्कार है, धिक्कार.

अभिषेक हीनभावना और कुंठा का शिकार होता चला गया. उसे अवसाद घेरने लगा. वह हर किसी से बच कर रहने लगा. उसे लगता जैसे दुनिया में उस का कोई नहीं. वह बिलकुल अकेला है. अभिषेक की मनोदशा को भांप कर एक दिन शीतल ने उस से कहा, ‘‘अभिषेक, तुम इतने उदास क्यों रहते हो? हमारे पास किस चीज की कमी है?’’

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