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राकेश की निष्ठुरता पर भी खूब क्रोध आता. उन के शाम को जल्दी आ जाने पर भी खीजी हुई मैं रसोई से ही चाय बना कर पिंकी के हाथ भिजवा देती और स्वयं काम में उलझ रहती. थोड़ी देर पिंकी के साथ गुप्पें लड़ा कर राकेश फिर बाहर चले जाते.

मुझे महसूस होता मेरे अंदर एक बांध है जो किसी दिन टूट जाएगा तो सबकुछ उस में बह जाएगा. पर यह बांध कभी टूट नहीं पाया. ठंडी रिक्तता हम दोनों के बीच बनी रही.

रंजू ने इस बीच बीटैक कर ली थी. देहरादून के रिसर्च इंस्टिट्यूट में जब उस की नौकरी लग गई तो मैं और पिंकी काफी अकेले पड़ गए. अकसर रंजू से मोबाइल पर बात होती रहती थी. उसे मेरी बहुत याद आती थी.

फिर एक दिन रंजू का मैसेज आया, ‘‘मैं ने अपनी पसंद की एक ईसाई लड़की से कचहरी में शादी करर ली है. ऐसा इसलिए किया क्योंकि शायद पता चलने पर आप और पिताजी इस के लिए कभी राजी न होते. कुछ दिन बाद छुट्टियां मिलने पर आप का आशीर्वाद लेने आऊंगा.’’

मैसेज पढ़ कर मैं तो एकदम से टूट ही गई. कैसे पलपल घुटघुट कर सारी इच्छाएं और उमंगें मैं ने रंजू पर कुरबान कर दी थीं और उस ने मुझे शादी कर के कैसे सूचना भेजी है. अपनी इस जीवनसंध्या में जब मैं पिंकी के ससुराल जाने के बाद रंजू की बहू से ही दिल बहलाने के ढेरों ख्वाब संजो रही थी, वे सारे उस के पत्र ने बिखेर कर रख दिए. उस की उम्र ही अभी क्या थी जो शादी कर ली. शहरों में तो लड़के 30-32 में शादी करते हैं.

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