कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

नीला एकदम से विफर पड़ी क्योंकि एक तो वैसे ही वह थकीमांदी घर आई थी उस पर अपनी मां का परायापन व्यवहार देख कर उस का मन रोने को हो आया. ‘अरे, तो क्या हो गया जो जरा इन्हें यहां आना पड़ गया? आखिर रुद्र भी तो इन का कुछ लगता है कि नहीं? एक बार यह भी नहीं पूछा कि तूने खाना खाया या नहीं? बस लगीं सुनाने. अपने पोतेपोतियों के पीछे पूरा दिन भागती फिरती हैं. कौरेकौर खाना खिलाती हैं उन्हें, तब थकान नहीं होती इन्हें.

लेकिन जरा सा रुद्र को क्या देखना पड़ गया, ताकत ही खत्म हो गई इन की. अरे, यह क्यों नहीं कहतीं कि रुद्र इन के आंखों को खटकता है. देखना ही नहीं चाहतीं ये मेरे बच्चे को,’ मन में सोच नीला कड़वाहट से भर उठी. ‘‘अच्छा ठीक है भई, जो तुम्हें ठीक लगे करो, मुझे क्या है,’’ नीला के मनोभाव को पढ़ते हुए मालती सफाई देते हुए बोलीं, ‘‘मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही हूं न. वैसे महेश का फोन आया था क्या?’’ मालती की बात पर नीला सिर्फ ‘हूं’ में जवाब दे कर लाइट औफ करने ही लगी कि मालती फिर बोल पड़ीं, ‘‘महेश की मां कह रही थी कि तुम दोनों की शादी जितनी जल्दी हो जाए अच्छा है और मैं भी तो यही चाहती हूं कि मेरे जीतेजी फिर से तुम्हारा घर बस जाए.

अरे, मेरा क्या भरोसा कब अपनी आंखें मूंद लूं,’’ भावनाओं का जाल बिछाते हुए मालती रोने का नाटक करने लगीं ताकि नीला ?ाट से उस महेश से शादी के लिए हां बोल दे. मगर नीला अपनी मां की सारी नौटंकी सम?ाती थी. आखिर, बचपन से जो देखती आई थी. ‘‘अच्छा ठीक है मां, अब मु?ो सोने दो सुबह बात करेंगे,’’ बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से पर नियंत्रण रख नीला ने अपनी आंखें बंद कर लीं और सोचने लगी कि उस का कहां मन होता है अपने मासूम बच्चे को यों किसी और के भरोसे छोड़ कर जाने का? लेकिन जाना पड़ता है क्योंकि अगर पैसे नहीं कमाएगी तो रुद्र को कैसे पालेगी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...