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उधर से समीर ने क्या कहा, यह तो तन्वी सुन नहीं पाई. इस पर सुधा ने कहा. “आज घर पर आने के बाद पूछना उस से कि कौन था वह? जरा जोरदार आवाज में चिल्ला कर झगड़ा करना, अक्ल ठिकाने आ जाएगी उस की. चार लोग सुनेंगे तो उस का मजाक भी बनेगा. अच्छा, मैं फ़ोन रखती हूं. टाइम मिलने पर कौल करूंगी. बाय जानू.” और सुधा ने फ़ोन रख दिया. और तन्वी की तरफ देख कर बोली, “अब मजा आएगा. समीर घर जा कर काव्या से झगड़ा करेगा, गलियां देगा. और आसपास के लोग सुनेंगे. बड़ा मजा आएगा. सारी होशियारी धरी रह जाएगी उस की. बहुत सजसंवर कर घूमती है, अब पता चलेगा उस को.”

तन्वी ने सुधा से कहा, “दीदी, आप ने समीर से झूठ क्यों कहा, हम तो मार्केट गए ही नहीं. हम तो घर पर ही थे. आप ने ऐसा क्यों कहा?”

“तू नहीं समझेगी,” सुधा ने कहा, “उन दोनों के बीच झगड़े होते रहना चाहिए. तभी तो समीर मेरी मुट्ठी में रहेगा. झगडे होने से उन के बीच दूरियां बढ़ेंगी. जितना वे एकदूसरे से दूर होंगे, समीर उतना मेरे करीब होगा. उस की वाइफ, एक तो वह पढ़ीलिखी है, सुंदर भी है और मैं दिखने में साधारण हूं. इसलिए समीर को काव्या के खिलाफ भड़काती रहती हूं ताकि उन के बीच मनमुटाव चलता रहे. इस का मैं फायदा उठाती हूं. जो कहती हूं, समीर मानता है.”

“इस का मतलब, तुम काव्या से जलती हो. किसी की गृहस्थी क्यों बरबाद कर रही हो? समीर तो वैसे भी तुम्हारे जाल में फंसा हुआ है, जो थोड़ाबहुत रिश्ता उन दोनों के बीच बचा हुआ है, उसे भी क्यों ख़त्म कर देना चाहती हो? सच तो यह है, दीदी, तुम काव्य से जलती हो. तुम उस की बराबरी करने की कोशिश करती हो. इसलिए जैसे वह कपडे पहनती है, जिस रंग के पहनती है, उसी रंग और डिजाइन के कपड़े खरीदती हो, चाहे वो तुम पर फबे या न. चूंकि काव्या ने पहने है, इसलिए तुम्हें भी पहनना होता है. हर चीज में तुम उस की बराबरी करने की कोशिश करती हो यह दिखाने के लिए कि तुम उस से कम नहीं हो. लेकिन इस से सचाई बदल नहीं जाएगी और न ही तुम उस के जैसी बन पाओगी क्योंकि कुछ गुण व्यक्ति के जन्मजात होते है,” तन्वी ने कहा.

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