कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘तुम अपने पेपर्स मु?ो दे दो...साउथ की एक यूनिवर्सिटी में मैं ने बात कर ली है. वहां तुम्हारा रजिस्ट्रेशन करवा रही हूं...अपनी पढ़ाई पूरी करो. अपना जरूरी सामान एक बैग में रखना. मैं टिकट बुक करवा कर मैसेज करूंगी. तुम यहां से भाग जाना. यहां तुम और तुम्हारा बच्चा दोनों ही सुरक्षित नहीं हैं. चली जाओ यहां से...अपनी पहचान बनाओ ताकि फिर कोई तुम्हारी तरफ आंख भी न उठा सके.’’

वेदिका हतप्रभ सी बैठी सुनती रही. अचानक यह क्या हो गया, वह सम?ा ही नहीं पाई.

‘‘उठो पेपर्स दो मु?ो जल्दी,’’ 2 हाथों ने उसे ?ाक?ोर दिया.

वेदिका हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई. उस ने अपने पेपर्स और फोन नंबर लिख कर दिया. राधिका की 2 आंखों के करुण भाव की पहचान ने उस की हर बात पर विश्वास करवा दिया था, जिस के दम पर वह खुद की पहचान बनाने के लिए उस की हर योजना के लिए तैयार हो गई थी. अगले 10 मिनट में पूरी योजना बन गई.

फिर कमरे में सन्नाटा छा गया. जातेजाते 2 हाथों ने उसे मजबूती से थाम कर दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘आगे की जंग तुम्हें अकेले लड़नी है, लेकिन इन बेगानों के बीच के अकेलेपन से ज्यादा अकेलापन वहां नहीं होगा विश्वास करो. मैं भी लगातार तुम्हारे संपर्क में नहीं रह पाऊंगी वरना मेरे माध्यम से ये लोग तुम तक पहुंच जाएंगे. लेकिन हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी. अपनी तरफ से तुम्हारी खैरखबर लेती रहूंगी. बस, तुम हिम्मत न हारना.

अपनी पहचान बना कर अपने और अपने बच्चे के हक के लिए लौटना.’’

वेदिका देर तक वैसी ही बैठी रही. आंसू गालों से लुढ़क कर गोद में समाते रहे. खुद की पहचान बनाने के लिए उसे अपनी मौजूदा पहचान से दूर बहुत दूर हो जाना है, एक अनजानी दुनिया में अकेले सिर्फ अपने दम पर ताकि इस घर के लोग उसे ढूंढ़ न सकें. उन के मन के प्रौपर्टी खो देने या उस का हिस्सा होने के डर के सामने उस की कोख में पलती विदित की आखिरी निशानी और वह खुद उन के लिए कोई माने नहीं रखती.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...