आज सुबह से ही अविनाश बेहद व्यस्त था. कभी ईमेल पर, कभी फोन पर, तो कभी फेसबुक पर.

‘‘अवि, नाश्ता ठंडा हो रहा है. कब से लगा कर रखा है. क्या कर रहे हो सुबह से?’’

‘‘कमिंग मम्मा, जस्ट गिव मी फाइव मिनट्स,’’ अविनाश अपने कमरे से ही चिल्लाया.

‘‘इतने बिजी तो तुम तब भी नहीं थे जब सीए की तैयारी कर रहे थे. हफ्ता हो गया है सीए कंप्लीट हुए, पर तब से तो तुम्हारे दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं या तो नैट से चिपके रहते हो या यारदोस्तों से, अपने मांबाप के लिए तो तुम्हारे पास समय ही नहीं बचा है,’’ अनुराधा लगातार बड़बड़ किए जा रही थी. उस की बड़बड़ तब बंद हुई जब अविनाश ने पीछे से आ कर उस के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘कैसी बात कर रही हो मम्मा, तुम्हारे लिए तो टाइम ही टाइम है. चलो, आज तुम्हें कहीं घुमा लाऊं,’’ अविनाश ने मस्ती की.

‘‘रहने दे, रहने दे. घुमाना अपनी गर्लफ्रैंड को, मुझे घुमाने को तो तेरे पापा ही बहुत हैं, देख न कब से घुमा रहे हैं. अब मेरे साथ 2-3 दिन के लिए भैया के पास चलेंगे. वे लोग कब से बुला रहे हैं, कह रहे थे पिताजी क्या गए कि तुम लोग तो हमें बिलकुल ही भूल बैठे हो. आनाजाना भी बिलकुल बंद कर दिया,’’ अनुराधा ने नाश्ता परोसते हुए शिकायती लहजे में कहा. उसे अच्छे से पता था कि पीछे खड़े पतिदेव मनोज सब सुन रहे हैं.

‘‘बेटे से क्या शिकायतें हो रही हैं मेरी. कहा तो है दिसंबर में जरूर वक्त निकाल लूंगा, मगर तुम्हें तो मेरी किसी बात का भरोसा ही नहीं होता,’’ मनोज मुंह में टोस्ट डालते हुए बोले. टोस्ट के साथ उन के वाक्य के आखिरी शब्द भी पिस गए.

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