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लेखिका- सिंधु मुरली

पूर्व कथा

डा. शांतनु के अस्पताल में अंजलि एक ऐसी मरीज बन कर आई थी, जिस का सामूहिक बलात्कार किया गया था. अंजलि से मिलने के बाद डा. शांतनु का ब्रह्मचर्य का प्रण डगमगाने लगा था. लेकिन अंजलि हादसे के बाद बिलकुल टूट चुकी थी. वह मर जाना चाहती थी. ऐसे में डा. शांतनु ने एक अच्छे सलाहकार की भूमिका निभाई और अंजलि का खोया आत्मविश्वास उसे वापस लौटा दिया. अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद अंजलि मुंबई वापस लौट आई. मगर उस का डा. शांतनु से संपर्क लगातार बना रहा.

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शांतनु और अंजलि के बीच फोन पर संपर्क बना रहा. दोनों के स्वर में एकदूसरे के लिए अपार ऊर्जा थी. शांतनु के मन ने तो अब अंजलि से विवाह की बात भी सोचनी शुरू कर दी थी, परंतु जबान तक आतेआते मन ही उन्हें खामोश कर देता.

शांतनु यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि सिर्फ उन्हीं के हृदय में अंजलि के लिए ऐसी भावनाएं हैं. यह भी एक कारण था उन की झिझक का और शायद उन का मन अंजलि को विवाह जैसे गंभीर मामले पर बातचीत के लिए और समय देना चाहता था.

‘‘सर, अगले महीने 15 डाक्टरों का दल एक सेमिनार में भाग लेने के लिए दिल्ली

जा रहा है. 7 दिनों का प्रोग्राम है. चीफ पूछ रहे थे कि क्या आप भी जाना चाहेंगे?’’

एक सुबह जूनियर डाक्टर मनु ने शांतनु से पूछा, तो उन का हृदय तो कुछ और ही

सोचने लगा.

‘‘तुम जा रहे हो क्या?’’ उन्होंने डा.

मनु से पूछा.

‘‘औफकोर्स, अपने देश जाने का मौका भला कौन छोड़ना चाहेगा सर,’’ डा. मनु बहुत उत्साहित लग रहे थे.

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