लेखक- राजीव रोहित
‘‘मुझे छुट्टी चाहिए,’’ जयंती ने लता से कहा.
‘‘क्यों? अभी हाल ही में तो छुट्टी पर गई थी,’’ लता ने हैरान हो कर जयंती की तरफ देखते हुए कहा.
‘‘अरे यार, उत्सव मनाना है,’’ जयंती ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘उत्सव...’’ लता हैरान हो गई.
‘‘हां मेरी यार उत्सव यानी त्योहार...’’
‘‘वह तो ठीक है लेकिन अभीअभी तो लोड़ी गई न?’’
‘‘और भी उत्सव हैं यार...’’ जयंती ने गंभीर स्वर में कहा.
‘‘अच्छा जरा मैं भी तो सुनूं. नया उत्सव कौन सा है?’’
‘‘है तो पर सोच रही हूं कि उत्सव का उल्लेख छुट्टी के आवेदनपत्र में करूं या नहीं,’’ जयंती थोड़ी गंभीर हो गई.
‘‘अब व्यक्तिगत स्तर पर जो चाहे हम उत्सव मना लें तो कोई क्या कर लेगा. लिख दे न जो भी कारण है,’’ लता ने उस की तरफ देखते हुए कहा.
‘‘कारण तो ऐसा है मेरी जान के उसे पढ़ कर हंगामा हो जाए.’’
‘‘बहनजी, ऐसा भी क्या कारण है?’’ लता ने उस की बांह में चिकोटी काटते हुए कहा.
‘‘है एक विशेष कारण. चल तुझे बता ही दूं,’’ जयंती ने शोख अंदाज में कहा.
‘‘जल्दी बोल, मैं मरी जा रही हूं.’’
‘‘तो दिल थाम कर सुन, मैं अपनी तलाक की सालगिरह मनाना चाहती हूं,’’ जयंती ने गंभीर स्वर में कहा.
‘‘क्या कह रही है तू?’’ लता जैसे उछल पड़ी. उस की आंखों में जबरदस्त कुतूहल उभरा.
‘‘हां यार, लोग शादी की सालगिरह मनाते हैं मैं तलाक की मनाना चाहती हूं तो इस में बुराई क्या है?’’
‘‘बिलकुल सही बात है. इस फरवरी की
14 तारीख को यानी वैलेंटाइनडे के दिन 1 वर्ष पूरा हो जाएंगे. है न जयंती?’’ लता भी गंभीर हो गई.
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