Hindi Sad Story: ‘‘भैया, मैं... मैं जल्द ही आप के पैसे लौटा दूंगी, सच कहती हूं. लेकिन अभी मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. प्लीज भैया,’’ घिघायाते हुए आरती अपने बड़े भाई से बोल रही थी कि इस संकट की घड़ी में मायके वालों के सिवा और कोई नहीं है जो उस की मदद कर सके. मगर आरती के भाई ने दोटूक शब्दों में यह बोल कर फोन रख दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं तो कहां से दे.

आरती ने जब अपने छोटे भाई मनोज से जोकि अपने परिवार के साथ बैंगलुरु में रहता है, मदद मांगी तो उस ने भी यह बोल कर फोन रख दिया कि इतने बड़े शहर में यहां अपना ही खर्चा चलाना मुश्किल है तो वह उसे पैसे कहां से दे पाएगा. फिर कई बार उस ने फोन मिलाया, पर उस के भाइयों ने फोन बंद कर दिया ताकि आरती फोन करकर के उन्हें परेशान न कर सके. दोस्त, नातेरिश्तेदारों ने भी इस आढ़े वक्त में आरती की मदद करने से इनकार कर दिया. जब अपनों ने ही मुंह मोड़ लिया तो परायों से क्या आस.

लेकिन आरती को अब समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करेगी? कहां से पैसे लाएगी? नरेश से तो कुछ बोल नहीं सकती है क्योंकि वह तो खुद ही अस्पताल में पड़ा है और बच्चे क्या समझेंगे उस की परेशानी? उन्हें तो यही पता है कि उस के पापा को चोट लगी है इसलिए अस्पताल में भरती हैं, जल्दी घर वापस आ जाएंगे. नरेश के ऐक्सीडैंट के बारे में बता कर वह बच्चों को टैंशन नहीं देना चाहती थी. इसलिए उन से इतना ही कहा कि उन के पापा को मामूली चोट लगी है, जल्दी ठीक हो कर घर आ जाएंगे. मगर बिट्टू अब कोई बच्चा नहीं रहा, सब समझता है वह.

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