Hindi Satire : 8 बजे के करीब नाश्ता खत्म कर सरला धोबी को प्रैस के लिए कपड़े देने नीचे उतरी तो लौबी में उमेशजी से मुलाकात हो गई. वे थोड़े चिंतित से लिफ्ट से निकल रहे थे. दोनों हाथों में कई थैले पकड़े थे. सरला को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि आज उमेश भाई साहब दफ्तर नहीं गए, जरूर कोई विशेष बात है.

उमेशजी ने सरला का अभिवादन किया तो उस ने अपना प्रश्न पूछ ही लिया.

वे ठिठके. फिर थोड़े परेशान से बोले, ‘‘क्या बताऊं भाभीजी, ज्योत्सना बीमार है. 3 दिन हो गए हैं.’’

‘‘एकदम ठीक हमारे सामन रहने वाली हमारी पड़ोसिन बीमार है और हमें पता तक नहीं?’’ सरला ने बड़े भोलेपन से कहा.

‘‘मैं तो परेशान हो गया हूं, भाभीजी. दफ्तर से छुट्टी ले कर ज्योत्सना की तीमारदारी में जुटा हूं. उस पर भी सारा घर अस्तव्यस्त हो गया है. सच, घर तो घरवाली से ही है. वह देखभाल न करे तो सब चौपट हो जाता है,’’ उमेशजी के स्वर में मन की गहन पीड़ा व्याप्त थी.

‘‘मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताइए?’’ सरला ने औपचारिकतावश कह दिया.

‘‘जरूर बताएंगे, भाभीजी, अरे, इस तरह के सुखदुख में पड़ोसी ही काम आते हैं,’’ कहते हुए उमेशजी अपने फ्लैट में घुस गए.

सरला प्रैस वाले को कपड़े दे कर ज्योत्सना को देखने चली गई. करीब घंटा वहां बैठ कर जब लौटी तो उस का मन उदास और अशांत था. अब उस के अंतर में केवल एक  ही महत्त्वाकांक्षा थी कि काश, वह भी बीमार पड़ जाती.

ज्योत्सना क्या शान से पलंग पर लेटी थी. हर समय फोन पर नोटिफिकेशन की घंटी बज रही थी. कितने ठाट से वह अपने पति से सेवा करा रही थी. उमेशजी मौसमी का जूस उसे अपने हाथ से पिला रहे थे. ज्योत्सना की 2 सहेलियां उस से मोबाइल पर चैट कर रही थीं. सिरहाने रखी मेज पर दवाइयां, ग्लूकोस और पीने का पानी रखा था.

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