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अंकुर बीचबीच में अपनी मां को बता रहा था कि वे लोग कहां तक पहुंचे या कितनी देर में पहुंच जाएंगे.

रास्ते में पहली बार तुहिना अपने ससुरजी से भी इतनी घुलमिल कर बातें करती जा रही थी. उस के ससुरजी काफी लंबे बलिष्ठ कदकाठी के व्यक्ति थे, जिन पर उम्र अपनी छाप नहीं लगा पाई थी अब तक.

जब कार लंबीचैड़ी बाउंड्री वाल को पार करती हुई एक दरवाजे के सामने जा कर रुकी तो तुहिना हैरान रह गई उस दरवाजे को देख कर.

अर्धगोलकार बड़े से उस नक्काशीदार लकड़ी के दरवाजे के ऊपर महीन काष्ठकारी की हुई थी, दरवाजा तो इतना बड़ा था मानो उस में से हाथी निकल जाए. अवश्य इन दरवाजों का प्रयोग हाथी घुसाने के लिए किया जाता होगा, वह अब तक मुंहबाएं दरवाजे को ही देख रही थी कि अंकुर ने कुहनी मारी. सामने उस की सासू मां खड़ी थीं, आरती का थाल ले कर.

गोल सा चेहरा, गेंहुआ रंगत, मझोला कदकाठी, उलटे पल्ले की गुलाबी रेशमी साड़ी पहनी उस की सासू मां ने उसे सिंदूर का टीका लगाया, बेटेबहू दोनों की आरती उतारी और लुटिया में भरे जल को 3 बार उन के ऊपर वार कर अक्षत के साथ ढेर सारे सिक्के हवा में उछाल दिए.

गांव की मुहानी से कार के पीछेपीछे दुलहन देखने को उत्सुक दौड़ते बच्चे झट उन्हें लूटने लगे. यह तो अच्छा हुआ था कि तुहिना ने आज सलवारकुरती और दुपट्टा पहना हुआ था, वरना बड़ी शर्म आती कि सासू मां सिर पर पल्लू लिए हुए हों और बहू जींसटौप में.

अंकुर ने कुछ भी नहीं बताया था, वह पूछती रह गई थी कि वह क्या पहने, कैसे कपड़े ले कर वह गांव चले.

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