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अब तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन अब बेटी के स्कूल आदि शुरू होने को थे, सो शिप पर इधरउधर रहना मुमकिन नहीं था. इस बार यह घर अभिमन्यु ने हमारे लिए खरीद दिया था ताकि मम्मीपापा का भी साथ मिलता रहे. वे लोग भी यहीं मुंबई में थे. हीरामणि की पढ़ाई बेरोकटोक चलती रहे, ऐसा प्रयास था. अब अभिमन्यु तो सिर्फ छुट्टियों में ही घर आ सकते थे न. अब की जब 9 महीने का शिपिंग कंपनी का अपना कांट्रेक्ट पूरा कर के हम लोग आए तो 3 महीने की पूरी छुट्टियां घर तलाशने और उसे सेट करने में ही निकल गई थीं. घर वाकई बहुत खूबसूरत मिल गया था. मकान मालिक की पत्नी का देहांत कुछ समय पहले हो गया था. उन के एक बेटा था, जो अमेरिका में ही शादी कर के बस गया था. उन्हें अब इतने बड़े घर की जरूरत ही नहीं थी सो इसे हमें सेल कर दिया.

अपने लिए सिर्फ एक कमरा रखा, जिस में अटैच्ड बाथरूम वगैरह था. इस से ज्यादा उन्हें चाहिए ही नहीं था. थोड़े ही दिनों में वे हम से खुल गए थे. हम भी उन्हें घर के एक बुजुर्ग सा ही मान देने लगे थे. हीरामणि का दाखिला भी अच्छे स्कूल में हो गया था. अभिमन्यु सब तरह से संतुष्ट हो कर अपनी ड्यूटी पर चले गए. उन के जाने के बाद तो अंकल और अपने लगने लगे थे. वे मुझे और हीरामणि को अपना बच्चा ही समझते थे. हीरामणि तो उन्हें दादाजी भी कहने लगी थी. बच्चे तो वैसे भी कोमल मन और कोमल भावनाओं वाले होते हैं, जहां प्यार और स्नेह देखा, बस वहीं के हो कर रह गए.

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