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इन हालात में प्यार का नशा बहुत देर तक नहीं रहता. आयुषी ने एक दिन कुछ तलखी से  कहा, ‘‘प्रतीक, मैं देख रही हूं, घर के सारे खर्च मैं वहन करती हूं. तुम अपने सारे पैसे बचा रहे हो, आखिर किस के लिए? इस घर की जिम्मेदारी मेरी अकेली की तो नहीं? तुम्हारा कोई फर्ज नहीं बनता है क्या?’’

हमारेतुम्हारे का भाव कहां से आ गया? मेरा पैसा बच रहा है, तो वह एक दिन हमारे ही काम आएगा,’’ कह वह मुंह चुरा कर दूसरी तरफ देखना लगा.

आयुषी को बुरा लगा. बोली, ‘‘मेरी तरफ देख कर बात करो. वह दिन कब आएगा, जब तुम्हारा पैसा काम आएगा? क्या उस दिन, जब तुम उसे ले कर भाग जाओगे?’’

यह बहुत कड़वी बात थी. आयुषी को भी अचंभा हुआ कि वह कैसे इतनी कड़वी बात कह गई, परंतु कभीकभी मनुष्य बेबसी में कड़वी सचाई बयान कर जाता है.

आयुषी की तलखी बरकरार रही, ‘‘इस में क्या शक है. मुझे तो ऐसे ही आसार दिखाई दे रहे हैं. साफ लग रहा है कि तुम मेरे साथ खेल खेल रहे हो. प्यार का नाटक कर के मेरे शरीर से खेल रहे हो और मेरे पैसे से मौज कर रहे हो. एक दिन जब तुम्हें लगेगा कि न मेरे हाथ में कुछ बचा है, न शरीर में, तुम बाज की तरह उड़ कर दूसरे पेड़ पर बैठ जाओगे और मैं सूखी हड्डियां लिए इधरउधर मारीमारी फिरती रहूंगी.’’

प्रतीक ऐसे चुप बैठा रहा जैसे किसी ने उस के गाल पर तेज तमाचा जड़ दिया हो. उस का पूरा चेहरा सुन्न हो गया था. उस की समझ में कुछ नहीं आया कि वह आयुषी से क्या कहे, कैसे उसे समझाए?

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