नयना अपने हाथों में लिए उस कागज के टुकडे़ को न जाने कब से निहार रही थी. उसे तो खुश होना चाहिए था पर न जाने क्यों नहीं हो पा रही थी. जब तक कुछ हासिल नहीं होता है तब तक एक जुनून सा हावी रहता है जेहन पर. इस कागज के टुकड़े ने मानो उस का सर्वस्व हर रखा था. पर क्या करे इस शाम को जब हर दिन की वह जद्दोजहद एक झटके में समाप्त हो गई. अब जो भी हो इस शाम को इस हासिल का जश्न तो बनता ही है.
अगले ही पल गहरे मेकअप तले खुद को, खुद की भावनाओं को छिपाए एक डिस्को में जा पहुंची. यही तो चाहिए था उसे. इसी को तो पाना था उसे, पर फिर ये आंसू क्यों निकल रहे हैं? क्यों नहीं झूम रही? क्यों नहीं थिरक रही? क्यों यह शोर, ये गाने जिन के लिए वह बेताब थी, आज कर्णफोड़ू और असहनीय महसूस हो रहे हैं?
यही चाहिए था न, फिर पैर थिरकने की जगह जम क्यों गए हैं… उफ…
फिर ये अश्रु, यह मूर्ख बनाती बूंदाबांदी, जब देखो उसे गुमराह करने को टपक पड़ती है. यह वही बूंदाबांदी है जिस ने नयना के जीवन को पेचीदा बना दिया है. कहते हैं ये आंसू मन के अबोले शब्द होते हैं, पर क्षणक्षण बदलते मन के साथ ये भी अपनी प्रकृति बदलते रहते हैं और मानस की उल झनों को जलेबीदार बना बावला साबित कर देते हैं. तेज बजता संगीत, हंसतेचिल्लाते लोग, रंगीन रोशनी और रहस्यमय सा अंधकार का बारबार आनाजाना, बिलकुल उस की मनोस्थिति की तरह.
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काश यह शोर कम होता, काश थोड़ी नीरवता होती.
अजीबोगरीब विक्षिप्त सी सोच होती जा रही है उस क. मन उन्हीं छूटी गलियों की तरफ क्यों भाग रहा है, जिन्हें छोड़ने को अब तक तत्पर थी, आतुर थी.
नयना की शादी एक अभियंता जतिन से हुई थी, जो देश के एक टौप इंजीनियरिंग कालेज से पढ़ा हुआ होनहार कैंडिडेट था उस वक्त अपनी बिरादरी में. नयना ने भी इंजीनियरिंग की ही डिगरी हासिल की थी और किसी आईटी फर्म के लिए काम करती थी. शादी के वक्त सबकुछ बहुत रंगीन था, शादी खूब धूमधड़ाके से हुई थी नयना के शहर मुंबई से. शादी के बाद वह विदा हो कर जतिन के शहर रायपुर गई और फिर दोनों हनीमून मनाने चले गए.
जतिन चूंकि खनन अभियंता था तो लाजिम था कि उस की पोस्टिंग खदान के पास ही होगी. वह झारखंड के कोयला खदान में कार्यरत था और पिपरवार नामक कोलयरी में उस की पोस्टिंग थी. कोयला खदान के पास ही सर्वसुविधा संपन्न कालोनी थी, जहां अफसरों और श्रमिकों के परिवार कंपनी के क्वार्टरों में रहते थे. जतिन को भी एक बंगला मिला हुआ था, जिस में एक छोटा सा बगीचा भी था और सर्वैंट क्वाटर्स भी. हनीमून से लौट कर जतिन बड़ी खुशी से नयना को ले कर पिपरवार अपने बंगले पर अपनी गृहस्थी शुरू करने गया. अब तक वह गैस्ट हाउस में ही रहता था सो अब पत्नी और घर दोनों की खुशी उसे प्रफुल्लित कर रही थी. जिंदगी के इस नवीकरण से उत्साहित जतिन अपने क्वार्टर को घर में तबदील करने में लग गया. नयना भी उसी उत्साह से इस नूतनता का आनंद लेने लगी.
नवविवाहित जोड़े को हर दिन कोई न कोई कालोनी में अपने घर खाने पर निमंत्रित करता था. शहर से दूर उस छोटी सी कालोनी में सभी बड़ी आत्मीयता से रहते थे. आपस के सौहार्द और जुड़ाव की जड़ें गहरी थीं, किसी सीनियर अफसर की पत्नी ने खुद को नयना की भाभी बता एक रिश्ता बना लिया तो किसी ने बहन, तो किसी ने बेटी. नयना को 1 हफ्ते तक अपनी रसोई शुरू करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. कोई न कोई इस बात का ध्यान रख लेता था.
इस बीच एक बूढ़ी महिला बुधनी को उन्होंने काम पर रख लिया जो बंगले से लगे सर्वैंट क्वार्टरों में रहने लगी. नयना भी वर्क फ्रौम होम करने लगी.
पिपरवार से नजदीकी शहर रांची कोई 80 किलोमीटर दूर था. एक महीने में ही कई बार नयना जिद्द कर वहां के कई चक्कर काट चुकी थी. जबकि जरूरत की सभी दुकानें कालोनी के शौपिंग सैंटर में उपलब्ध थीं. मगर रांची तो रांची ही था, एक सुंदर पहाड़ी नगर मुंबई की चकाचौंध वहां नदारद थी. 2 महीने होतेहोते नयना को ऊब होने लगी, औफिसर क्लब में हफ्ते में एक बार होने वाली पार्टी में उस का मन न लगता. वहां का घरेलू सा माहौल उसे रास न आता. जतिन भी दिनोंदिन व्यस्त होता जा रहा था, खदान की ड्यूटी बहुत मेहनत वाली होती है और जोखिम किसी सैनिक से कम नहीं. थक कर चूर, कोयले की धूल से अटा जब वह लौटता तो नयना का मन वितृष्णा से भर जाता. जतिन उसे बताता खदान में चलने वाले बड़ेबड़े डोजरडंपरों के बारे में कि कैसे वे गहरी खदानों में चलते हैं, कैसे कोयला काटा जाता है. उन भारीभरकम मशीनों के साथ काम करने के जोखिम की भी चर्चा करता या बौस की शाबाशी या डांट इत्यादि का जिक्र करता तो नयना उबासी लेने लगती. उस के अनमनेपन को भांपते हुए जतिन अगली छुट्टी का प्रोग्राम बनाने लगता.
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मगर जो था सो था ही, पैसे आ तो रहे थे जो नयना को बेहद पसंद थे पर सचाई यह
थी कि वह महानगरीय जीवन की कमी महसूस करने लगी थी. उसे आश्चर्य होता कि यहां रहने वाली दूसरी स्त्रियां खुश कैसे रहती हैं. वहां के शांत वातावरण में उसे सुख नहीं रिक्तता महसूस होने लगी. न कोई मौल, न कोई मल्टीप्लैक्स, भला कोई इन सब के बिना रहे कैसे?
वह इतवार था जब उन दोनों ने शादी के 2 महीने पूरा होने की खुशी में केक काटा था और 5-6 कुलीग्स को खाने पर बुलाया था. रात में वह सोशल मीडिया पर अपनी सहेली की तसवीरें देख रही थी, जो उस ने दिल्ली के किसी मौल में घूमते हुए खींची थीं.
अचानक उसे अपना जीवन बरबाद लगने लगा और बहुत खराब मूड के साथ उस ने जतिन को जता भी दिया. जतिन ने हर तरीके से अपने प्यार को जताने की खूब कोशिश की पर नयना पर मानो भूत सवार था.
आगे पढ़ें- कुछ ही दिनों के बाद जब उस ने जतिन को सूचना दी कि…
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