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एक अच्छे पद पर काम करने वाली धारा के सरल स्वभाव की वे मन ही मन प्रशंसा करते. धारा ने पिता का स्नेह देखा ही नहीं था, वह पापापापा करती विनय के आगेपीछे घूमती.

सुधा समझ जाती कि धारा के मन में अपने पिता के साथ समय न बिता पाने की कसक रह गई है. उन के मन में इस समय धारा के लिए कोमल भाव जागते, फिर थोड़ी देर बाद वे एक संगदिल सास के रूप में जल्दी ही आ जातीं.

अगली सुबह धारा 6 बजे उठी. सुधा भी जागी हुई थी और किचन में चाय चढ़ा रही थीं, गुड मौर्निंग बोलते हुए धारा ने कहा, ‘‘मां, मैं फ्रेश हो कर आई, मेरी भी चाय छान लेना आप. आज बहुत काम है, साढ़े 8 बजे से एक मीटिंग है, आती हूं.‘‘

सुधा ने 2 कप चाय छानी और लिविंग रूम में बैठ कर पीनी शुरू की. धारा ने आते ही कहा, ‘‘मां बताओ, क्याक्या काम कर दूं? क्या सब्जी काट दूं?‘‘

सुधा ने कहा, ‘‘पहले आराम से चाय पी लो.‘‘

‘‘मां, खाली क्या बैठूं? साथ ही साथ कुछ काम भी निबटा देती हूं, नाश्ता क्या बनाना है? पोहा बना लूं?‘‘

‘‘ठीक है.‘‘

धारा तेजी से गई और आलूप्याज ले आई. चाय पीतेपीते सब काट कर रखा, फिर पूछा, ‘‘मां, सब उठने वाले होंगे, बना दूं क्या?‘‘

‘‘पहले नहा लो.‘‘

‘‘मां, आज वीडियो काल्स हैं. किचन के काम निबटा कर नहाधो कर तैयार हो जाऊंगी.‘‘

‘‘मैं कई दिन से तुम्हें बताना चाह रही थी, हमारे यहां बहू नहाधो कर ही किचन में घुसती हैं,‘‘ सुधा ने कहा.

‘‘पर क्यों मां?‘‘ धारा पूछ बैठी.

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