लेखक- प्रशांत जोशी
सुधा को अंदर आने के लिए कह कर वे अंदर चले गए. उन्होंने टीशर्ट पहन ली थी. सुधा से बाराबंकी का हालचाल पूछा और फिर उस के यहां आने का कारण भी. सुधा ने उन्हें बताया कि उसे दिल्ली यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन लेना है.
मनोज भैया ने हौसला बढ़ाने के बजाय उसे बता दिया कि दिल्ली में ऐडमिशन आसान नहीं होगा. यहां मैरिटलिस्ट बहुत हाई जाती है. उसे इन नंबरों पर ऐडमिशन मिला भी तो किसी सांध्य कालेज में मिलेगा. सुधा इस के लिए भी तैयार थी. उस के सिर पर तो ऐडमिशन की धुन सवार थी. मनोज भैया ने उस से फ्रैश होने के लिए कहा और खुद चाय लेने चले गए. उस ने देखा कमरे में रसोई नहीं थी.
बाथरूम भी बाहर बालकनी में था, वह नहीं चाहती थी कि मनोज भैया के सामने उसे बाथरूम जाना पड़े. बाराबंकी वाली शर्म, संकोच का दामन उस से छूटा नहीं था. मनोज भैया के लौटने से पहले ही वह तैयार हो चुकी थी. मनोज भैया के साथ उस ने चाय पी और मुद्दे पर आ गई. वह ऐडमिशन की सारी प्रक्रिया के बारे में फौरन जानना चाहती थी. मनोज भैया ने उसे बताया कि एकएक कालेज का फार्म ही 1,000-1,200 रुपए का होता है.
सुधा समझ गई कि आगे का रास्ता अब बेहद मुश्किल है. इस के बाद उस ने मनोज भैया को अपनी असली स्थिति बताई. वे सुधा को कोई आश्वासन नहीं दे सके. हां, उन्होंने सुधा को फौरन जाने को भी नहीं कहा. मनोज भैया से इस बारे में वह कोई बात भी नहीं कर सकी, उस ने कुछ कहा नहीं और उन्होंने कुछ पूछा नहीं.
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मनोज भैया ने टिफिन वाले को फोन कर दिया. दोपहर में करीब साढ़े 12 बजे टिफिन वाला 2 टिफिन दे गया. उस ने किसी तरह अपना पूरा टिफिन खाली कर दिया. मनोज भैया पढ़ रहे थे. उन्होंने वही टिफिन 3 बजे खाया. सुधा ने सोचा कि जिस टिफिन का बेकार खाना वह ताजाताजा नहीं खा पाई उस टिफिन को मनोज भैया बिना कुछ कहे कैसे इतनी देर बाद खा रहे हैं.
सुधा शाम को उन के साथ नीचे गई. बत्रा सिनेमा के सामने कटिंग चाय पीने का ये उस का पहला अनुभव था. वहां पर मौजूद सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे अनुभवी लड़कों की नजर ने पहली बार में ही ताड़ लिया कि इलाके में कोई नई लड़की आई है, लेकिन मनोज भैया की मौजूदगी में वे दूर ही रहे.
सुधा ने भी देख लिया कि उस के गोरे रंग और तीखे नैननक्श पर लड़के लट्टू थे. उसे लगा जैसे इन लड़कों की नजरें उसे कह रही हों, ‘वेलकम टू दिल्ली.’ हालांकि उन की नजरें सुधा के चेहरे पर कम उस के उभारों पर अधिक केंद्रित थीं. सुधा को इन लड़कों के अंदाज से थोड़ी सिहरन होने लगी. उसे समझ में आ गया कि लड़कों का बस चले तो वे आंखों से देख कर ही उसे प्रैग्नैंट कर दें.
फिलहाल उस ने अपना ध्यान चाय पर ही टिका दिया. मनोज भैया ने ही चाय के पैसे दिए. उन्होंने सुधा से पूछा, ‘‘क्या तुम घर चली जाओगी, मुझे थोड़ा काम है. दोस्त के यहां से कुछ नोट्स लाने हैं.’’ सुधा ने कहा, ‘‘हां, चली जाऊंगी और वह बत्रा से 2 गली छोड़ कर उस मकान में पहुंच गई.’’
उस ने सोचा जब तक मनोज भैया नहीं हैं, तब तक कमरे की कुछ साफसफाई कर दे. कमरे में था ही क्या, एक फोल्डिंग चारपाई, एक पढ़ने की टेबल, एक कुरसी, एक अलमारी, किताबों की 2 छोटी रैक, एक सूटकेस, लेकिन फिर भी कमरे में एक अस्तव्यस्तता थी. सुधा ने सब से पहले पलंग पर पड़ी धूल झाड़ी और फिर चादर और गद्दे झाड़ने लगी.
गद्दा जैसे ही नीचे गिरा, गद्दे के नीचे से कुछ किताबें गिरीं. सुधा ने सोचा कि जब कमरे में 2-2 अलमारियां हैं तो गद्दे के नीचे किताबें क्यों रखी हैं.
सुधा ने उन किताबों को देखा. एक किताब पर लिखा था प्राइवेट लाइफ. सुधा ने अंदर पढ़ना शुरू किया. पहला पेज पढ़ते ही सुधा के बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई. उसे अपने शरीर में कसावट महसूस हुई. उसे किताब पढ़ने में मजा आने लगा. सुधा जल्दीजल्दी किताब पढ़ने लगी. सिर्फ 40 मिनट में उस ने 35 पन्नों की किताब पूरी पढ़ ली. उसे अपनी टांगों के बीच कुछ गरम सा महसूस हुआ. उस ने किताब खत्म कर तुरंत दूसरी किताब पढ़ने के लिए उठा ली. साफसफाई की बात तो वह भूल ही गई. ये घटिया किस्म की किताबें उसे बेहद मनोरंजक लग रही थीं. उस ने दूसरी किताब भी फौरन ही पढ़ ली.
इस के बाद उस ने दोनों किताबें ठीक वैसे ही रख दीं, जैसे पहले रखी हुई थीं. मानो उस ने ये किताबें देखी ही नहीं थीं, इस के बाद उस ने पूरे कमरे की सफाई की. उसे पढ़ाई की टेबल पर किताब में दबे 100-100 के 5 नोट मिले. वह जानती थी कि ये पैसे मनोज भैया के ही होंगे. उस ने किताबों से निकाल कर पैसे मेज पर सामने रख दिए.
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मनोज भैया के पास पैसों की कमी नहीं होगी. यह वह जानती थी. बाराबंकी में भैया के पापा का सब से बड़ा मैडिकल स्टोर था. रोजाना करीब 15-20 हजार रुपए से कम की कमाई नहीं थी. मनोज भैया थे भी इकलौते. शाम के 7 बज चुके थे. सुधा को भूख लग रही थी, लेकिन खाने के लिए कुछ नहीं था. सुधा ने अपना सूटकेस खोला और अपने कपड़े ठीक करने लगी.
दरवाजे पर दस्तक हुई. सुधा ने दरवाजा खोला. सामने मनोज भैया थे. उन के हाथ में एक थैली थी. उन्होंने सुधा से कहा कि भूख लगी थी इसलिए मोमोज खाने के लिए ले आया. सुधा ने मोमोज नाम पहली बार सुना था. उस ने पूछा ये क्या होता है.
अजीब सा आकार था उन का, लेकिन मनोज भैया को खाता देख उस ने भी एक पीस उठा लिया, मिर्च की चटनी के साथ गरम मोमोज उसे पहली बार में अच्छा नहीं लगा, लेकिन भूख बहुत तेज लगी थी, इसलिए उस ने दूसरा पीस भी उठा लिया. तब तक मनोज भैया की नजर कमरे की सुधरी हुई हालत पर पड़ी तो वे थोड़े परेशान दिखे और बोले, ‘‘तुम ने कमरा साफ क्यों किया सुधा, मैं सुबह काम वाली को बोल देता.’’ ‘‘कोई बात नहीं भैया, मैं खाली ही तो बैठी थी,’’ सुधा बोली.
मनोज भैया ने उस के पास आ कर उसे थैंक्यू कहा. उन के हाथ उस के सिर से पीठ और फिर कमर तक फिसलते चले गए. इतने लंबे थैंक्यू की शायद सुधा को उम्मीद नहीं थी, लेकिन उसे इस का बुरा भी नहीं लगा. उस ने उठते हुए कहा, ‘‘मनोज भैया, आप किताब में 500 रुपए रख कर भूल गए थे. मैं ने रुपए मेज पर रखे हुए हैं.’’
मनोज ने रुपए उठा कर जेब में रख लिए. सुधा ने उस से पूछा कि क्या ऐडमिशन के लिए वे कुछ कर सकते हैं. मनोज भैया ने कहा, ‘‘सुधा, यहां बाराबंकी जैसे नहीं होता. यहां बहुत मुश्किल है ऐडमिशन होना. हां, तुम जब तक चाहो यहां रहो.’’
सुधा का चेहरा बुझ सा गया. उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे. तभी मनोज भैया उस के पास आए और उस का चेहरा उठाया. आंसू पोंछते ही वह अचानक मनोज भैया के गले लग गई. वह सुधा के इस अंदाज से थोड़ा संकोच में पड़ गए, लेकिन उन्होंने सुधा को हटाया नहीं.
आगे पढें- सुधा को अपनी पीठ पर मनोज भैया के…
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