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श्रेया को आज भी अच्छी तरह याद है वह शाम जब नेहा थकीहारी और परेशान सी कालेज से घर लौटी थी और फिर सहसा श्रेया के गले लग कर रोने लगी थी. पीछेपीछे विपुल भी आया था. उस ने नेहा को बैठने का इशारा किया और फिर श्रेया से मुखातिब होते हुए बोला, ‘‘श्रेया, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो ठीक है विपुल, मगर पहले नेहा को तो देख लूं... यह रो क्यों रही है?’’

‘‘मैं ही हूं, इस की वजह,’’ विपुल श्रेया के सामने आ कर खड़ा हो गया.

‘‘मतलब?’’

श्रेया चौंक उठी.

‘‘मतलब यह कि नेहा मेरी वजह से रो रही है.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’ श्रेया कुछ समझ नहीं पाई.

‘‘मैं जानता हूं श्रेया, तुम्हारे लिए समझना कठिन होगा. मगर मैं मजबूर हूं. मैं चुप नहीं रह सकता. मैं नेहा से प्रेम करने लगा हूं और इसी से शादी करूंगा.’’

‘‘क्या? तुम नेहा से प्रेम करते हो? और मैं? मैं क्या थी? तुम्हारे मन बहलाव का जरीया? टाइमपास? नहीं विपुल मैं तुम्हारी इस बात पर कभी यकीन नहीं करूंगी.’’

फिर श्रेया ने तुरंत नेहा के पास जा कर पूछा, ‘‘विपुल क्या कह रहे हैं नेहा? यह सब क्या है? यह सब झूठ है न नेहा? तू सच बता नेहा...’’

‘‘दीदी, मैं स्वयं नहीं जानती कि मेरी जिंदगी में क्या लिखा है. फिर मैं आप को क्या बताऊं?’’

‘‘सिर्फ इतना बता कि क्या तू और विपुल एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते हैं? क्या विपुल ने जो कहा वह सच है?’’

झुकी नजरों से नेहा ने हां में सिर हिलाया तो श्रेया के पास कुछ कहने या सुनने को

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