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विहाग ने एक बार फिर अपनी तरफ से क्वार्टर पाने की मुहिम तेज करते हुए पीडब्लूआई के सीनियर सिविल इंजीनियर के आगे अर्जी ले कर हाजरी दी.

बहुत व्यस्त इंसान, एक तरफ सरकार के घर कोई काम होता दूसरी ओर उन के घर में कोई नया वैभवविलास जुड़ जाता. यों करतेकरते एक मंजिल मकान अंदरूनी ठाठ के साथ तीन मंजिला विशाल बंगला तो बन ही चुका था, शहर के अंदरबाहर कई मालिकाना हस्ताक्षर थे उन के नाम. यानी बीसियों जगह उन की संपत्ति बिखरी पड़ी थी, तो स्वाभाविक ही था ऐसा इंसान उन्हें संभालने में व्यस्त रहेगा ही हरदम. खातेपीते चर्बी का प्रोडक्शन हाउस था उन का शरीर.

विहाग को इंजीनियर साहब ने बड़़े गौर से परखा. अनुभवी आंखों से कुछ क्षण स्कैन होता रहा विहाग का सर्वांग चेहरे से ले कर चप्पल तक. लड़का उन के हिसाब से जरा कम समझदार है. बोले, ‘‘तुम मेरे घर आओ, यहां बात नहीं हो सकती.’’

दूसरे दिन शाम को विहाग ने अपनी ड्यूटी का समय किसी दूसरे से बदल कर, ज्यादा दुरुस्त हो कर इंजीनियर साहब से कहे जाने वाले वाक्यों के विन्यासों पर मन ही मन नजर फरमा कर दरख्वास्त के कागजों के साथ उन के घर पहुंचा.

इंजीनियर उसे अपने आधुनिक सुसज्जित ड्राईंगरूम के गद्देदार सोफे पर बिठा कर अंदर चले गए. विहाग साभार धन्यवाद करते हुए कागजात की फाइल ले कर बैठा सामने दीवार पर टंगी घड़ी की सुई गिनने लगा. कभी सायास, कभी अनायास.

घड़ी दो घड़ी का कांटा जब घंटा भरभर का होने लगा और इंतजार नामुमकिन सा हो कर विहाग को बेबस करने लगा तब अंदर से परदा हटा कर एक गोरी सुंदर बहुत ही ज्यादा गोलमटोल मलाई में चुपड़ी सी मालपूए की काया वाली लगभग 30 वर्षीया बाला का पदार्पण हुआ. हाथ में उस के बड़ा सा ट्रे था जिस में सजे थे मनलुभावन मिठाइयां, नमकीन और शर्बत. विहाग सारे माजरे को भांप अंदर ही अंदर पसीने से तरबतर होने लगा.

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