रिया बेतहाशा भाग रही थी उस साए से बचने के लिए, मगर उस की पुकार सुनने वाला वहां कोई नहीं था. भयभीत हिरनी की तरह शिकारी से बचने के लिए उस ने मदद के वास्ते अपनी नजरें चारों तरफ दौड़ाईं. मगर कहीं कोई नजर नहीं आया. पूरा शहर जैसे रातोंरात वीरान हो गया था. अब तक वह नकाबपोश उस के बेहद करीब पहुंच चुका था, भागने का कोई रास्ता अब बचा नहीं था. खुद को बचाने की कोशिश में उस ने पूरी ताकत लगा कर उस नकाबपोश का मुकाबला करना चाहा, मगर उस की कोशिशें उस दरिंदे की ताकत के सामने हार गईं. कपड़ों की तह में छिपा खंजर निकाल उस ने रिया पर हमला बोल दिया. दर्द में तड़पती हुई वह खून से लथपथ जमीन पर गिर पड़ी.
‘‘मुझे बचा लो, मां, मुझे बचा लो,’’ वह बदहवास लहजे में चीख रही थी.
‘‘रिया उठ, रिया क्या हुआ? रिया, रिया,’’ कोई उसे झंझोड़ कर उठाने की कोशिश कर रहा था.
उस ने आंखें खोलीं तो देखा, वह अपने कमरे के बिस्तर पर लेटी हुई थी. उस की कुरती पसीने से भीगी हुई थी, पूरा शरीर अब भी थरथर कांप रहा था.
‘‘कोई बुरा सपना देखा क्या? बाप रे, कितनी जोर से चीखी तुम, मैं तो डर ही गई थी.’’ रूममेट शिखा हैरानपरेशान उस के सिरहाने खड़ी थी.
‘‘बहुत डरावना सपना देखा, यार. कोई मेरी जान लेने की कोशिश कर रहा था,’’ रिया ने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा.
‘‘सपना ही था न, खत्म हो गया, बस. अब उठ कर जल्दी से तैयार हो जा वरना आज फिर क्लास लगेगी,’’ शिखा ने कहा.
मगर रिया अभी तक उस सपने के सदमे में थी. कुछ देर तक वह यों ही चुपचाप बैठी रही. फिर उन बुरे खयालों को दिमाग से झटक कर वह बाथरूम में घुस गई.
उस की एयरहोस्टैस की ट्रेनिंग को अभी कुछ ही अरसा गुजरा था. इस नए शहर में उस के लिए सबकुछ नया था. शहर की तेजतर्रार जिंदगी के साथ रिया अभी कदम से कदम मिला कर चलना सीख रही थी. अपने घरपरिवार से दूर इस बड़े शहर में आने का उस का एक ही मकसद था, अपने भविष्य को सुनहरा बनाना और इस के लिए वह जीजान से मेहनत भी कर रही थी.
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उस के छोटे से कसबे में इतनी सुविधाएं नहीं थीं कि रिया अपने सपनों की उड़ान भर पाती. 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों में पास करने के बाद उस के हौसले और मजबूत हो गए थे. कुछ करने की तमन्ना उस के मन में शुरू से ही थी. छोटी सी रिया जब अपनी छत पर से गुजरने वाले हवाईजहाजों को देखती तो उस का जी चाहता कि वह भी किसी जहाज में बैठ कर आसमान की ऊंचाइयों से नीचे झांके, अपना छोटा सा घरआंगन और आंगन में अपने परिवार वालों को ऊपर से देख कर हाथ लहराए.
बड़ी मानमनौवल के बाद उस के बाबूजी किसी तरह राजी हुए थे और मां तो इस खयाल से ही डर रही थी कि उस की बिटिया इतने बड़े शहर में अकेले कैसे रहेगी. यह रिया का ही जनून था जो उस ने अकेले अपने दम पर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने के लिए भागदौड़ की थी.
घर छोड़ते वक्त मां के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. बाबूजी ने किसी तरह पैसों का इंतजाम किया था. कर्ज का बोझ और गरीबी की लाचारी उन के चेहरे पर हर वक्त झलकती थी. रिया मांबाप की सारी परेशानियां समझती थी, इसीलिए नौकरी कर के वह अपने परिवार का सहारा बनना चाहती थी. बड़ी बहादुरी से उस ने अपने आंसू रोक कर मां को तसल्ली दी कि बस, एक बार अच्छी सी नौकरी मिल जाए तो वह बाबूजी के सारे कर्ज उतार देगी. इतना सुख देना चाहती थी अपने मांबाप को वह कि लोग उस की मिसाल दें.
शहर में अकेले रहने की चुनौतियां कुछ कम नहीं थीं. शिखा से उस की मुलाकात इंस्टिट्यूट में ही हुई थी. एक ही इंस्टिट्यूट में होने के कारण दोनों का मकसद भी एक था और साथ में रहने से उन दोनों के खर्चे बचते. दोनों ने फैसला लिया कि वीमेन होस्टल के बजाय एक कमरा किराए पर ले कर रहा जाए.
एक ढंग का कमरा तो मिला मगर मकानमालकिन उम्रदराज और कुछ खब्ती निकली. उस की शर्त थी कि किसी तरह का कोई बवाल या हुड़दंग नहीं होना चाहिए और 3 महीने का अग्रिम किराया एकमुश्त देना होगा. इतना खर्च करना उस की जेब पर भारी पड़ रहा था, लेकिन यह तसल्ली थी कि एक सुरक्षित माहौल में रह कर दोनों अपनी ट्रेनिंग पूरी कर सकती हैं.
जल्द ही रिया ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट के होनहार छात्रों में शुमार हो गई. उस का एक ही लक्ष्य था और उस के लिए वह पूरी लगन के साथ अपनी पढ़ाई में ध्यान देती थी. इसी दौरान उस के बहुत से नए दोस्त भी बन गए. उन दोस्तों की संगत में उसे बड़े शहर के बहुत से अनछुए पहलुओं को जानने का मौका मिला. दोस्तों के साथ मिल कर मौजमस्ती करना, पब और डिस्को जाना आदि बातें अब उस की जिंदगी का हिस्सा थीं.
कभी सादगी से रहने वाली रिया अब किसी फैशन पत्रिका की मौडल सी नजर आने लगी थी. यह कायाकल्प उस के ग्लैमर से भरे एयरहोस्टैस की नौकरी की पहली जरूरत भी थी.
रिया में खूबसूरती के साथसाथ आत्मविश्वास भी गजब का था. उसे पसंद करने वालों में उस के कई पुरुष मित्र थे. ट्रेनिंग में साथी लड़के उस की एक नजर के लिए तरसते और वह जैसे जान के भी अनजान बन जाती. प्यार के चक्कर में पड़ कर वह अपनी मंजिल से भटकना नहीं चाहती थी.
अपने पैरों पर खड़ी होने का सपना ही उस का पहला प्यार था जिसे हर हाल में उसे पूरा करना था. मां का उदास चेहरा याद आते ही एक आग सी लग जाती उस के तनबदन में और वह खुद को दोगुनी ऊर्जा से भर कर ट्रेनिंग में झोंक देती.
रिया की सहेली का खास दोस्त था विवेक, जिस के जन्मदिन की पार्टी में रिया और बाकी दोस्त आमंत्रित थे. पैसे वाले बाप के बेटे विवेक को पार्टियां देने और खूबसूरत लड़कियों से दोस्ती करने का शौक था. इन पार्टियों का सारा खर्च उस के कारोबारी पिता के लिए किसी मामूली जेबखर्च से अधिक नहीं होता था, जहां शराब पानी की तरह बहाई जाती और जवानी के जोश में डूबे कमउम्र लड़केलड़कियां देर रात तक हुड़दंग मचाते.
फाइवस्टार होटल की दावत के अनुरूप कपड़े खरीदने के लिए रिया ने पूरे 2 महीने तक कंजूसी कर के पैसे बचाए थे. कपड़े, मेकअप से ले कर नए जूते तक खरीद डाले थे उस ने. पहली बार किसी फाइवस्टार होटल के नजारे देख कर उस की आंखें चुंधिया गईं. शानोशौकत क्या होती है, यह उसे आज एहसास हुआ.
विवेक अपने दोस्तों के साथ बैठ कर जाम पे जाम चढ़ाए जा रहा था. रिया की तरह ही कई बला की खूबसूरत लड़कियां वहां मेहमान थीं और महफिल की शान में चारचांद लगा रही थीं. विवेक रिया को ललचाई नजरों से घूर रहा था. रिया ने हाथ मिला कर उसे जन्मदिन की बधाई दी तो बहुत देर तक उस ने रिया का हाथ नहीं छोड़ा.
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उत्तेजक संगीत की धुन में कई जवान जोड़े डांसफ्लोर पर थिरक रहे थे. शिखा ने हाथ पकड़ कर रिया को डांसफ्लोर की तरफ खींचा. ‘‘नहींनहीं, मुझे नाचना नहीं आता,’’ रिया ने प्रतिरोध में हाथ छुड़ाया.
‘‘कम औन रिया, चल न, बड़ा मजा आएगा,’’ शिखा पूरे मूड में थी.
‘‘यार, मुझे नहीं आता नाचना. मेरा मजाक बन के रह जाएगा,’’ रिया को झिझक हो रही थी.
‘‘चल मेरे साथ, मैं सिखा दूंगी,’’ रिया के मना करने के बावजूद शिखा उसे अपने साथ ले चली.
कुछ ही देर में रिया भी उसी मस्ती के माहौल में डूबने लगी. एक सुरूर सा उस के तनमन पर छाने लगा. उस का चेहरा लाखों में एक था, उस पर कमसिन उम्र और मासूम अदाएं. सुर्ख लाल रंग की मिनी ड्रैस में वह आज कहर ढा रही थी. उस की छठी इंद्रिय अनजान नहीं थी इस बात से कि न जाने कितनी ही बेकरार नजरें उसे निहार रही थीं.
मगर, एक जोड़ी आंखें उस का पीछा तब से कर रही थीं जब से उस ने यहां कदम रखा था. रिया पर से वे आंखें एक पल को भी नहीं हटी थीं. मगर इस से बेखबर रिया डांसफ्लोर पर किसी नागिन सी झूम रही थी.
‘‘गला सूख रहा है. मैं अभी आई कुछ पी कर,’’ शिखा उस के कान में लगभग चीखती हुई बोली.
‘‘मेरे लिए भी कुछ लेते आना,’’ रिया ने भी चिल्ला कर कहा. पुरजोर बजते कानफोड़ू संगीत में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.
‘‘ठीक है,’’ कह कर शिखा होटल के बार की तरफ बढ़ गई.
‘‘मे आई हैव द प्लेजर टू डांस विद यू,’’ उस अजनबी ने रिया के पास आ कर पूछा. रिया औपचारिकता से मुसकरा दी तो वह अजनबी उस के साथ थिरकने लगा.
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