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वह रिया को टकटकी लगाए देखे जा रहा था, कभी उस के एकदम पास आ जाता, कभी उस की गरम सांसें रिया के चेहरे से टकरा जातीं. वह जितना दूर जाने की कोशिश करती, वह उस के उतने ही करीब आ रहा था. रिया अब असहज होने लगी, सारा मजा किरकिरा हो चला था.

न जाने क्या था उन आंखों की गहराई में कि उस का मन चाहा कि वह फौरन वहां से हट जाए. हाथ में बियर का बड़ा सा मग ले कर शिखा लौटी तो रिया ने चैन की सांस ली.

‘‘बहुत देर से डांस कर रही हूं, मैं थक गई हूं, अब चलते हैं,’’ रिया उस के कान में फुसफुसाई. पार्टी देर तक चलने वाली थी मगर शिखा के साथ रिया वहां से चली आई. वे 2 आंखें अब भी रिया का पीछा कर रही थीं. अपने कमरे में बिस्तर पर लेटते ही रिया को गहरी नींद ने आ घेरा. न जाने कितनी देर से उस के मोबाइल की घंटी बज रही थी. नींदभरी आंखें मलतेमलते उस का हाथ अपने मोबाइल तक पहुंचा.

‘‘हैलो,’’ उस ने फोन उठाया, ‘‘हैलो, हैलो.’’

दूसरी तरफ से कोई जवाब न पा कर उसे झल्लाहट हुई. कुछ देर खामोशी रही और दूसरी तरफ से फोन कट गया.

रात के 2 बज रहे थे. न जाने किस का फोन था. उस ने करवट बदली और एक बार फिर से नींद की आगोश में चली गई.

सुबहसुबह शिखा ने चहकते हुए उसे उठाया, ‘‘उठ रिया देख तेरे लिए क्या आया है?’’

‘‘क्या है?’’ खीझ कर रिया उठ बैठी.

‘‘कोई तुम्हारे लिए यह रख कर गया है दरवाजे पर. कौन है मैडम, हमें कभी बताया नहीं,’’ शरारती लहजे में शिखा खिलखिला रही थी.

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दिलकश महकते फूलों से सजा हुए एक बुके था, साथ में लगा हुए एक छोटा सा कार्ड. रिया ने उलटपलट कर उस गुलदस्ते को देखा, कार्ड पर उस का नाम लिखा था फौर रिया विद लव.

‘‘मुझे नहीं पता यह किस ने भेजा और क्यों?’’ रिया का दिमाग चकराया. आज तो उस का जन्मदिन भी नहीं था, फिर किस ने उसे फूल भेजे हैं.

‘‘यार, नहीं बताना चाहती तो ठीक है, नाटक क्यों कर रही है,’’ शिखा बुरा लगने के अंदाज में बोली.

दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों एकदूसरे से कुछ नहीं छिपाती थीं कभी. रिया ने शिखा का मूड ठीक करने के लिए उसे कस कर आलिंगन में भर लिया. ‘‘सच में मुझे कुछ नहीं पता, ये फूल किस ने भेजे.’’  उस ने कसम खाने के लिए गले को छुआ.

‘‘फिर तो बड़ी अजीब बात है कि कोई यों ही फूल भेज रहा है,’’ शिखा कंधे उचका कर बोली.

‘‘तू उदास मत हो, क्या पता कल तेरे नाम का बुके आ जाए,’’ रिया ने चुहल की और दोनों जोरों से हंस पड़ीं.

बुके उठा कर रिया ने अपनी मेज पर सजा दिया. मगर यह सिलसिला सिर्फ फूलों तक नहीं थमा. रोज कोई चुपके से उस के दरवाजे पर उपहार रख के चला जाता था. रिया को लगा कोई उस के साथ शरारत कर रहा है. वह उपहारों को उठा लेती, शिखा के साथ मिल कर उन्हें खोलती और दोनों एकदूसरे को छेड़ कर खूब हंसतीं. मगर, मामला अब धीरेधीरे गंभीर हो चला.

तोहफे अब भी आते थे लेकिन रिया को अब हंसी नहीं आती थी, बल्कि एक अजीब सा खौफ उस के मन में छाने लगा. कोई जानपहचान वाला उसे तंग करने के लिए यह सब नहीं कर रहा था.

फूलों और तोहफों के सिलसिले ने जब थमने का नाम नहीं लिया तो रिया के मन का डर बढ़ने लगा. वह हर वक्त यही खैर मनाती कि उसे आज कोई फूल या उपहार न मिले दरवाजे पर. मगर वहां कुछ न कुछ रोज ही रखा रहता. लाल रंग के दिल के आकार के तकिए, महंगी विदेशी ब्रैंड की चौकलेट्स और बड़ेबड़े गिफ्टकार्ड जिन पर उस का नाम सजा होता. लेकिन कौन था इन तोहफों को भेजने वाला, यह राज था.

एक दिन घर लौटते वक्त उसे लगा कि कोई उस का पीछा कर रहा है. उस ने कई बार पलट कर देखा, 2-3 बार अलगअलग दुकानों में बेमतलब घुस गई. लोगों की भीड़ में आखिर वह किस पर शक करती.

‘शायद मेरा वहम है,’ उस ने खुद को ही तसल्ली दी. रोज की तरह रिया ने जब सुबह का अखबार उठाने के लिए दरवाजा खोला तो पाया वहां आज फिर एक डब्बा रखा हुआ था. वह समझ गई कि उस में क्या होगा. सिर से पैर तक एक बिजली सी उस के तन में कौंध गई. आज उस का गुस्सा सातवें आसमान पर था. उस ने डब्बा उठाया और बगैर खोले गैस का चूल्हा जला कर उस पर रख दिया.

शिखा ने गैस पर आग की लपटें देखीं. वह तुरंत भागती हुई आई और चूल्हा बुझा कर डब्बे पर पानी की बालटी उड़ेल दी. ‘‘यह क्या कर रही है रिया,होश में तो है? अभी पूरा घर ही जल जाता.’’

‘‘मैं तंग आ गई हूं, शिखा. अब बरदाश्त नहीं होता. न जाने कौन है जो मुझे चैन से जीने नहीं दे रहा. अब तो सुबह के खयाल से ही डर लगता है. वही फूल, वही सब रोजरोज नहीं झेला जाता.’’

रिया फफकफफक कर रोने लगी. उस के सब्र का बांध टूट गया था. उस की इस हालत पर शिखा बहुत परेशान हो उठी. आखिर वह भी एक लड़की थी. रिया के दुख से वह वाकिफ थी.

शिखा ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया, फिर बोली, ‘‘चुप हो जा, रिया. तू रो मत. जो भी तेरे साथ ये सब कर रहा है, अब बचेगा नहीं. तू आज ही मेरे साथ पुलिस स्टेशन चल. तुझे तंग करने वाले को अब पुलिस ही सबक सिखाएगी.’’

‘‘नहीं, मैं पुलिस के पास नहीं जाऊंगी. बात मेरे घर वालों तक पहुंच जाएगी.’ मांबाबूजी का चेहरा रिया की आंखों के आगे तैर गया.

‘‘तू नहीं जानती, शिखा, मेरे मांबाबूजी को. बहुत कमजोर दिल के हैं वे लोग. फौरन मुझे वापस बुला लेंगे. और मेरे सारे सपने अधूरे…’’ कहते हुए रिया की रुलाई फूट पड़ी.

रिया के पास बैठ कर बड़ी देर तक शिखा उसे हौसला बंधाती रही. उस का दिमाग रिया की परेशानी दूर करने का उपाय ढूंढ़ रहा था.

मानसिक तनाव की वजह से रिया का मन अब ट्रेनिंग में नहीं लग रहा था, उसे यों लगता था मानो कोई उस के हर पल की खबर रख रहा है. रातों को अजीबअजीब से सपने आते. मन का डर उस के चेहरे पर दिखने लगा. चेहरे पर हरदम बनी रहने वाली मुसकान अब गायब हो गई थी.

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एक दिन उस की ट्रेनर मिस सिन्हा ने उसे अपने पास बुलाया, ‘‘क्या बात है, रिया? कई दिनों से देख रही हूं आजकल तुम कुछ खोईखोई सी रहती हो, क्लास में भी अब पहले जैसा उत्साह नहीं दिखाती? एनी प्रौब्लम?’’

रिया इस प्रश्न से सकपका गई. यह बात अगर जगजाहिर हुई तो उस का मखौल बन कर रह जाएगा. ‘‘नो, मैम, सब ठीक है. कोई प्रौब्लम नहीं है,’’ रिया ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हूं, आई होप सो,’’ मिस सिन्हा बोलीं.

एक सीसीटीवी कैमरा घर के गेट पर लगाने का खयाल शिखा के दिमाग में आया. रिया को भी यह बात दुरुस्त लगी. जो भी गिफ्ट रखने दरवाजे के पास आएगा, उन्हें कैमरे में उस की तसवीर दिख जाएगी. उन्होंने मकानमालकिन से कैमरा लगवाने की बात की तो उस ने शकभरी नजर से दोनों को घूरा.

दोनों ने महल्ले में बढ़ती चोरी की वारदात का जिक्र किया तो वह मान गई.

यह अजीब इत्तेफाक था कि सीसीटीवी कैमरे के लगते ही फूल और गिफ्ट आने एकाएक बंद हो गए. हफ्ता बगैर किसी परेशानी के गुजर गया.

घर से इंस्टिट्यूट तक वह मैट्रो ट्रेन में सफर करती थी. मैट्रो की भीड़ में अपने लिए जगह तलाश करती रिया को अचानक किसी ने नाम ले कर पुकारा. रिया ने चौंक कर पुकारने वाले की तरफ देखा. कुछ जानापहचाना सा लगा उसे वह लड़का जो उस के लिए एक सीट खाली करा कर उसे बैठने का इशारा कर रहा था.

‘‘थैंक्स,’ रिया ने मुसकरा कर शुक्रिया अदा किया.‘ आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’ रिया ने पूछा.

‘‘उस दिन पार्टी में मैं आप से मिला था.’’

रिया को याद आया. यह वही लड़का था जो उस दिन विवेक के जन्मदिन की पार्टी में उस के साथ डांस कर रहा था.

रोहित ने उसे बताया कि वह किसी पौलिटैक्निक कालेज का छात्र है. उन की मुलाकात अब रोज ही होने लगी. रिया के लिए वह हमेशा कोई सीट खाली करा देता ताकि वह आराम से सफर कर सके. उस की तहजीब और शराफत से रिया के मन में अब उस की छवि बदल गई थी.

पार्टी में रिया को रोहित बदतमीज किस्म का लगा था पर कुछ दिनों में रोहित की शराफत और तहजीबभरे रवैए से रिया प्रभावित हुए बिना न रह सकी. रिया रोहित पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगी थी. रिया की हर छोटीबड़ी मुश्किल में रोहित हमेशा मदद के लिए आगे रहता था.

आगे पढ़ें- एक दिन भीड़ में किसी उचक्के ने रिया को छूने की…

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