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इतनी बेइज्जती सहने के बाद वहां कौन रहता. तब परम और मान्या ने 8 दिनों में ही यहां फ्लैट किराए पर ले लिया. यहां भी 1-2 बार आतेजाते पासपड़ोस की औरतों से जब बातें होती हैं तो औरतें उसे कुछ टटोलती सी निगाहों से देखती हैं. मान्या जानती है वे उस के शरीर पर सुहागचिह्न ढूंढ़ती हैं, क्योंकि मान्या न मांग भरती न बिंदी लगाती और न ही मंगलसूत्र व चूडि़यां पहनती.

एक दिन पड़ोसिन आशा ने तो कह ही दिया, ‘‘माना कि तुम बहुत पढ़ीलिखी हो, तो भी थोड़ाबहुत तो परंपराओं का निर्वाह करना ही पड़ता है. मैं भी समझती हूं कि तुम काम पर जाती हो मंगलसूत्र नहीं पहन सकतीं. मगर मांग और माथे पर सिंदूर तो लगा ही सकती हो.’’

‘‘परम को पसंद नहीं है,’’ कह कर मान्या ने बहाना बनाया और वहां से खिसक ली थी पर वह जानती थी कि महिलाओं के समूह में देर तक उस की आलोचना चलती रही होगी.

कभी मान्या से लोग पूछते की शादी को कितने साल हो गए? कभी महिलाएं अपनापन जताने के लिए बच्चे के बारे में टोकने लगतीं, ‘‘अब जल्दी से लड्डू खिलाओ.’’

मान्या क्या जवाब दे? वह कैसे लड्डू खिला सकती है? कभी सोसाइटी की महिलाएं उस के मायके और ससुराल के लोगों के न आने पर सवाल करती हैं. बात ज्यादा बढ़ने से पहले ही मान्या और परम फ्लैट बदल लेते हैं.

10 बजे परम उठा तो मान्या 2 कप चाय बना लाई. 3-4 दिन बाद जब मान्या काम पर जाने लगी तो देखा कि सामने वाले खाली फ्लैट में कोई रहने आ गया है.

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