आत्मनिर्भर बनने के भाषण ने नेताओं जैसे गुणों वाले मेरे घर के 3 तेज बुद्धि वालों को और सयाना बना दिया. भाषण का असर किसी पर हुआ हो या न, इन 3 सयानों के चेहरों की चमक देखने वाली थी.

मैं चुप रही. कोरोना टाइम में चौबीसों घंटे सब को झेलझेल कर इन की नसनस पहचानने लगी हूं. रातदिन देख रही हूं सब को. सरकार सा हो गया है घर मेरा. करनाधरना कम, शोर ज्यादा.

मुझे अपना अस्तित्व किसी मूर्ख, गरीब जनता जैसा लगता है. एक जरूरी काम बताती हूं, तो ये दस जगह ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं. कोशिश रहती है कि कोई जिम्मेदारी इन के ऊपर न आए. कोरोनाकाल में आजकल हाउसहैल्प नहीं है, तो इन सयानों को घर के कामों में कम से कम ही हाथ बंटाना पड़े.

मयंक कहने लगे, “रीना, वैसे सब काम मैनेज हो ही रहा है न, तो अब तुम पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गई हो. अब तो तुम्हें आशाबाई की भी जरूरत नहीं लगती न, प्राउड औफ़ यू, डिअर.''

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मैं फुंफकारी, ''उस के बिना हालत खराब है मेरी. चुपचाप काम किए जा रही हूं, तो इस का मतलब यह नहीं कि बहुत अच्छा लग रहा है. तुम तीनों तो किसी काम को हाथ तक नहीं लगाना चाहते. पता नहीं कैसे इतने सौलिड बहाने देते हो कि चुप ही हो जाती हूं.‘’

मलय को अचानक कुछ याद आया, ''मौम, आप को पता है कि विपिन की मौम घर पर ही पिज़्ज़ा बेस बना लेती हैं. कल इंस्टाग्राम पर विपिन ने पिक डाली, तो मैं ने उस से पूछा था कि सब शौप्स तो बंद हैं, तुम्हें पिज़्ज़ा बेस कहां से मिल गया? मौम, उस ने गर्व से बताया कि उस की मम्मी को पिज़्ज़ा बेस घर पर बनाना आता है.''

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