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कहानी- नज्म सुभाष

राष्ट्रीयस्तर पर आयोजित कहानी प्रतियोगिता में इस बार निर्णायक मंडल ने अरुण कुमार की कहानी को चुना था. प्रथम पुरस्कार के लिए जो कहानी चुनी गई वह एक ऐसे बच्चे पर आधारित थी, जिस के मांबाप बचपन में ही काल के गाल में समा जाते हैं और वह बच्चा तमाम उतारचढ़ाव के बाद आगे चल कर देश का प्रधानमंत्री बनता है. जजों में शामिल माधवी जोकि 3 साल पहले इसी संस्थान से सम्मानित की गई थी, जब उस ने इस कहानी को पढ़ा तो बहुत प्रभावित हुई. मगर जब उस ने लेखक का नाम पढ़ा तो उस के चेहरे के भाव बदलने लगे. अरुण कुमार... कहीं यह वही तो नहीं... मन में अजीब सी उथलपुथल शुरू हो गई.

‘‘सर,’’ उस ने अपने साथ बैठे वरिष्ठ साहित्यकार निर्मल से कहा.

‘‘हां बोलो माधवी.’’

‘‘मैं इस लेखक का फोटो देखना चाहती हूं.’’

‘‘लेकिन तुम्हें तो पता होगा प्रतियोगिता में फोटो भेजने का प्रावधान नहीं है नहीं तो प्रतियोगिता की पारदर्शिता पर लोग प्रश्नचिह्न लगा सकते हैं.’’

‘‘सौरी सर. मैं भूल गई थी,’’ उस ने जल्दी में अपनी बात संभाली.

‘‘लेकिन बात क्या है?’’

‘‘कोई बात नहीं सर... बस ऐसे ही पूछा था.’’

माधवी घर आ चुकी थी, लेकिन उस के मन पर न जाने कैसा बो झ महसूस हो रहा था, जिसे वह उतार फेंकना चाहती थी, मगर उतारे कैसे? उस के घर पहुंचते ही अदिति उस से लिपट कर प्यार जताने लगी. मगर आज उस का मन उचाट था. इतने दिनों से दबी चिनगारी को इस नाम ने आ कर फिर से हवा दे दी... आखिर क्यों?

माधवी तो भूल चुकी थी हर बात... हां हर बात... लेकिन आज फिर इस नाम ने जख्मों को कुरेद डाला. उस का सिर भारी होने लगा... अनचाहा दर्द सीने में टीस मारने लगा. उसे ऐसा लग रहा था जैसे भूतकाल उस के सामने प्रकट हो गया. वह भूतकाल जिसे वह वर्तमान में कभी याद नहीं करना चाहती... लेकिन वह तो सामने आ चुका था दृश्य रूप में उस के मानसपटल पर...

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