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बेचारी कामना, ‘बेचारी’ शब्द सुनसुन कर उस का मन भर गया था. कभीकभी तो वह गुस्से और क्षोभ से रो भी पड़ती थी लेकिन अनायास ही अरुण द्वारा उस के साथ विवाह प्रस्ताव रखे जाने पर बेचारी कहने वालों के मुंह बंद हो गए.

‘बेचारी कामना’, जैसे ही कामना वाशबेसिन की ओर गई, मधु बनावटी दुख भरे स्वर में बोली. दोपहर के भोजन के लिए समीर, विनय, अरुण, राधा आदि भी वहीं बैठे थे.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ समीर, विनय या अरुण में से किस ने प्रश्न किया, कामना यह अंदाजा नहीं लगा पाई. मधु सोच रही थी कि उस का स्वर कामना तक नहीं पहुंच रहा था या यह जानबूझ कर ही उसे सुनाना चाहती थी.

‘‘आज फिर वर पक्ष वाले उसे देखने आ रहे हैं,’’ मधु ने बताया.

‘‘तो इस में ‘बेचारी’ वाली क्या बात है?’’ प्रश्न फिर पूछा गया.

‘‘तुम नहीं समझोगे. 2 छोटे भाई और 2 छोटी बहनें और हैं. कामना के पिता पिछले 4 वर्षों से बिस्तर पर हैं...यही अकेली कमाने वाली है.’’

‘‘फिर यह वर पक्ष का झंझट क्यों?’’

‘‘मित्र और संबंधी कटाक्ष करते हैं तो इस की मां को बुरा लगता है. उन का मुंह बंद करने के लिए यह तामझाम किया जाता है.

‘‘इन की तमाम शर्तों के बावजूद यदि लड़के वाले ‘हां’ कर दें तो?’’

‘‘तो ये लोग मना कर देंगे कि लड़की को लड़का पसंद नहीं है,’’ मधु उपहास भरे स्वर में बोली.

‘‘उफ्फ बेचारी,’’ एक स्वर उभरा.

‘‘ऐसे मातापिता भी होते हैं?’’ दूसरा स्वर सुनाई दिया.

कामना और अधिक न सुन सकी. आंखों में भर आए आंसू पोंछने के लिए मुंह धोया. तरोताजा हुई और पुन: उसी कक्ष में जा बैठी. उसे देखते ही उस की चर्चा को पूर्णविराम लग गया.

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