‘‘ममा, लेकिन आप यह कैसे कह सकती हो कि आजकल के बच्चे पेरैंट्स के प्रति गैरजिम्मेदार हैं. किसी को चाहने का मतलब यह तो नहीं कि बच्चे पेरैंट्स के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं. लव अफेयर्स उन की जिंदगी का एक हिस्सा है, पेरैंट्स अपनी जगह हैं.

‘‘पेरैंट्स को जिन बातों से दुख पहुंचता है, बच्चे वही करें और कहें कि वे जिम्मेदार हैं.’’

‘‘ममा, पेरैंट्स की पसंदनापसंद पर बच्चे क्या खुद को वार दें? पेरैंट्स को भी हर वक्त अपनी पसंदनापसंद बच्चों पर नहीं थोपनी चाहिए.’’

‘‘अभी तू ने अपनी जिस फ्रैंड की बात की, उसी की सोचो, 19 साल की लड़की और लड़का भी 19 साल का, पेरैंट्स ने उन्हें बड़ी उम्मीदों से होस्टल भेजा कि पढ़ कर वे कैरियर बनाएं. अब दोनों अपने पेरैंट्स से झूठ बोल कर अलग फ्लैट में साथ रह रहे हैं. कोर्स किसी तरह पूरा कर भी लें तो क्या दिलदिमाग के भटकाव की वजह से बढि़या कैरियर बन पाएगा उन का? उम्र का यह आकर्षण एक पड़ाव के बाद जिंदगी के कठिन संघर्ष के सामने हथियार डालेगा ही, उस वक्त बीते हुए ये साल उन्हें बरबाद ही लगेंगे.’’

‘‘लगे भी तो क्या ममा? अभी वे खुश हैं तो क्यों न खुश हो लें? आगे की जिंदगी किस ने देखी है ममा.’’

‘‘यानी जो लोग भविष्य को संवारने के लिए मेहनत करते हैं वे मूर्ख हैं.’’

‘‘हो सकते हैं या नहीं भी, सवाल है किसे क्या चाहिए.’’

नीपा अपनी बेटी रूबी की दलीलों के आगे पस्त पड़ गई थी. बेटी ने अपनी सहेली की घटना सुनाई तो उसे भी रूबी की चिंता सताने लगी. वह भी तो उसी पीजी में रहती है. उस के अनुसार अब ऐसा तो अकसर हो रहा है. जाने क्या इसे लिवइन कह रहे हैं सब. पेरैंट्स बिना जाने बच्चों की फीस, बिल सबकुछ चुकाते जा रहे हैं और बच्चे अपनी मरजी के मालिक हैं.

नीपा को इतना तनाव, इतना भय क्यों सताने लगा है. किस बात की आशंका है, क्यों दिल घबरा रहा है? रूबी अपनी अलग स्ट्रौंग सोच रखती है इसलिए? या इसलिए कि गरमी की छुट्टियों में घर आ कर रूबी ने ममा के दिमाग को भरपूर रिपेयर करने की कोशिश की. नीपा क्यों बेटी के चेहरे को बारबार पढ़ने की कोशिश कर रही है? अपने पति अनादि से वह कुछ कहना चाहती है पर चुप हो जाती है. कहीं रूबी ने खुद की सिचुएशन का ही सहेली के नाम से… नहींनहीं, उस ने अपनी बेटी को बड़े अच्छे संस्कार दिए हैं, वह अपनी मां को इस तरह दुख नहीं दे सकती.

3-4 दिनों से रूबी से बात नहीं हो पा रही थी. वीडियो कौल तो उस ने बंद ही कर दी थी जाने कितने महीनों से. फोन में गड़बड़ी की बात कह कर टाल जाती. अब इतने दिन खोजखबर न मिलने पर नीपा की बेचैनी बढ़ गई. अनादि से सारी बातें कहनी पड़ीं उसे. उन्होंने पीजी की एक लड़की को फोन किया. पता चला, कालेज में 4 दिनों की छुट्टी देख रूबी दोस्तों के साथ कहीं घूमने गई है, इसलिए फोन पर बात नहीं हो सकती रूबी से.

मामला जटिल देख दोनों दूसरे शहर में रह रही बेटी के पीजी पहुंचे. पर बेटी वहां कहां. वह तो किसी लड़के के साथ एक फ्लैट किराए पर ले कर रहती है. लड़का उसी की क्लास का है.

अनादि स्तब्ध थे और नीपा का सिर चकरा गया. धम्म से नीचे जमीन पर बैठ गई. उबकाई से बेहोशी सी छाने लगी थी उस पर. दिल की धड़कनें चीख रही थीं बेसुध.

अब क्या? बेटी के पास उन्हें जाना था. बेटी के बिना या बेटी के इन कृत्यों के बिना? इकलौती बेटी के बिना जी पाना तो इन दोनों के लिए बहुत मुश्किल था. बेटी की उमंगें अभी आजादी की दलीलों के बीच पंख झपट रही हैं, वह तो पीछे नहीं मुड़ेगी.

ममापापा बेटी के पास पहुंचे तो रूबी ने न ही उन की आंखों में देखा और न ही दिल ने दिल से बात करने की कोशिश की.

नीपा ने खुद को समझाया. वक्त की मांग थी, वरना उन की आंखों की ज्योति आज इस तरह आंखें फेर ले…लड़का निहार भी वहीं था. उन्हें तो उस में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा जो रूबी ने उस में देखा था. हो सकता है नीपा न देख पा रही हो. फिर समझाया खुद को उस ने. भविष्य क्या?

‘आगे चल कर शादी करोगे बेटा रूबी से? कुछ सोचा है?’’

‘‘ममा, आगे देखना बंद करें आप. आज में जीना सीखें यही काफी है. अभी हम पढ़ते हुए पार्टटाइम जौब भी करेंगे. आप अगर हमारी मदद करेंगे तो हम आप से जुड़े रहेंगे. निहार ने भी घर वालों को बता दिया है. मजबूरी हो गई तो पढ़ाई छोड़ देंगे. अभी हम साथ ही रहेंगे जब तक जमा. अब आप की मरजी.’’

नीपा की आंखों में धुंधलका सा छाने लगा. ये आंसू थे या दर्द का सैलाब? वह कुछ समझ नहीं पा रही थी. बस, इतना ही समझ पाई कि बेटी से दोनों को बेइंतहा प्यार है. और इस प्यार के लिए उन्हें किसी शर्त की जरूरत नहीं थी.

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