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प्रेम जीजान लगा कर खेत में काम करने लगा. फिर खेत सोना क्यों न उगलता. अब मां कहतीं, ‘‘प्रेम, ब्याह कर ले,’’ तो वह कहता, ‘‘मां, अब मुझे बस तुम्हारी सेवा करनी है.’’ मां अपने लाल को गले लगा लेतीं. अपनी बहू की आस को यह सोच कर दबा देतीं कि कम से कम श्रवण कुमार जैसा बेटा तो साथ है. मांबेटा अपनी दुनिया में बहुत खुश थे.

कभीकभी किसी शाम को इंटरसिटी ऐक्सप्रैस की आवाज प्रेम को अंदर तक हिला जाती. वह अपना सिर पकड़ कर बैठ जाता. पुराने जख्म हरे हो जाते. मां सब समझती थीं, इसलिए वे बेटे को दुलारतीं, उसे अपने बचपन के किस्से सुनातीं, तो वह संभल जाता. एक दिन महल्ले में शोर सुन कर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई. प्रेम भी शोर सुन कर वहां पहुंचा तो अवाक रह गया. मधु के चाचा और चाची ने मधु का सामान घर के बाहर फेंक दिया था. मधु को देख कर तो वह अवाक रह गया. समय की गर्द ने जैसे उस की आभा ही छीन ली थी. वह अपनी उम्र से काफी बड़ी लग रही थी. उस की चाची जोरजोर से कह रही थीं, ‘‘कुलच्छिनी को पति ने छोड़ दिया तो आ गई हमारी छाती पर मूंग दलने. हम से नहीं होगा कि हम मुफ्त की रोटी तोड़ने वाले को अपने घर में रखें.’’ चाचाचाची ने घर का दरवाजा बंद कर लिया. घर के आसपास लगी भीड़ धीरेधीरे छंट गई. घर के बाहर केवल मधु और मधु का हाथ पकड़े नन्ही बिटिया ही रह गई. प्रेम ने महल्ले वालों से सुना था कि मधु के पति ने मधु को तलाक दे दिया है. एकदो बार मां ने भी प्रेम से इस बारे में बात की थी. परंतु आज की घटना बहुत अप्रत्याशित थी. मधु सालों बाद उसे इस हाल में दिखाई देगी, उस ने यह सपने में भी नहीं सोचा था. प्रेम दूर खड़ा मांबेटी को रोता हुआ देखता रहा. उन का रोना उस के दिल को छू रहा था, लेकिन वह पता नहीं कैसे अपने को रोके हुआ था. फिर अचानक वह आगे बढ़ा और लपक कर मधु की बिटिया को गोद में उठा लिया. रोरो कर जारजार हुई मधु ने चौंक कर नजरें उठाईं तो प्रेम को देख कर उस की आंखें और भी नम हो गईं. प्रेम मधु की बिटिया को ले कर तेज चाल से अपने घर की ओर चल दिया. अपनी बिटिया का रोना सुन कर मधु भी प्रेम के पीछेपीछे भाग चली, बिलकुल वैसे ही जैसे बछड़े के पीछे गाय भागती है.

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