बड़े से मौल में अपनी सहेली शिखा के साथ चहलकदमी करते हुए साड़ी कार्नर की ओर बढ़ गई थी सुहासिनी. शो केस में काले रंग की एक साड़ी ने उस का ध्यान आकर्षित किया पर सेल्स- गर्ल की ओर पलटते ही वह कुछ यों चौंकी मानो सांप पर पांव पड़ गया हो.

‘‘अरे, मानसी तुम, यहां?’’ उस के मुंह से अनायास ही निकला था.

‘‘जी हां, मैं यहां. कहिए, किस तरह की साड़ी आप को दिखाऊं? या फिर डे्रस मेटीरियल?’’ सेल्स गर्ल ने मीठे स्वर में पूछा था.

‘‘नहीं, कुछ नहीं चाहिए मुझे. मैं तो यों ही देख रही थी,’’ सुहासिनी के मुख से इतना भी किसी प्रकार निकला था.

मानसी कुछ बोलती उस से पहले ही सुहासिनी बोल पड़ी, ‘‘मानसी, क्या मैं तुम से कुछ देर के लिए बातें कर सकती हूं?’’

‘‘क्षमा कीजिए, मैम, हमें काम के समय व्यक्तिगत कारणों से अपना स्थान छोड़ने की अनुमति नहीं है. आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगी,’’ मानसी ने धीमे स्वर में उत्तर दिया था और अपने कार्य में व्यस्त हो गई थी.

‘‘क्या हुआ? इस तरह प्रस्तरमूर्ति बनी क्यों खड़ी हो? चलो, जल्दी से भोजन कर के चलते हैं. लंच टाइम समाप्त होने वाला है,’’ शिखा ने उसे झकझोर ही दिया था और मौल की 5वीं मंजिल पर स्थित रेस्तरां की ओर खींच ले गई थी.

‘‘क्या लोगी? मैं तो अपने लिए कुछ चाइनीज मंगवा रही हूं,’’ शिखा ने मीनू पर सरसरी निगाह दौड़ाई थी.

‘‘मेरे लिए एक प्याली कौफी मंगवा लो और कुछ खाने का मन नहीं है,’’ सुहासिनी रुंधे गले से बोली थी.

‘‘बात क्या है? कैंटीन में खाने का तुम्हारा मन नहीं था इसीलिए तो हम यहां तक आए. फिर अचानक तुम्हें क्या हो गया?’’ शिखा अनमने स्वर में बोली थी.

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