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पिछला भाग- सुबह का भूला: भाग-2

इस बार उस के पिता ने उस की पीठ पर 2 धौल जमाए और उसे खूब डांटा. पर इस बात के लिए उस पिता की इतनी निंदा हुई कि पूछो ही मत.’’

‘‘पर बेटेजी, यह तो सरासर गलत है. आखिर मांबाप, घर के बड़ेबुजुर्ग और टीचर बच्चों का भला चाहते हुए ही उन्हें डांटते हैं. बच्चे तो आखिर बच्चे ही हैं न. बड़ों जैसी समझ उन में कहां से आएगी? शिक्षा और अनुभव मिलेंगे, तभी न बच्चे समझदार बनेंगे,’’ बीजी का मत था.

‘‘आप की बात सही है, बीजी. बल्कि अब यहां भी कुछ ऐसे लोग हैं, कुछ ऐसे शोधकर्ता हैं जो आप की जैसी बातें करते हैं, पर यहां का कानून...’’ सतविंदर की बात अभी पूरी नहीं हुई थी कि अनीटा कमरे में आ गई, ‘‘ओह, कम औन डैड, आप किसे, क्या समझाने की कोशिश कर रहे हो? यहां केवल पीढ़ी का अंतर नहीं, बल्कि संस्कृति की खाई भी है.’’

जब से अनीटा ने बीजी और केट की बातें सुनी थीं तब से वह उन से खार खाने लगी थी. उस ने उन से बात करनी बिलकुल बंद कर दी. जब उन की ओर देखती तभी उस के नेत्रों में एक शिकायत होती. उन की कही हर बात की खिल्ली उड़ाती और फिर मुंह बिचकाती हुई कमरे में चली जाती.

‘‘सैट, सुनीयल को अपने आगे की शिक्षा हेतु वजीफा मिला है. उस ने आज ही मुझे बताया कि उस के कालेज में आयोजित एक दाखिले की प्रतियोगिता में उस ने वजीफा जीता है. इस कोर्स को ले कर वह बहुत उत्साहित है,’’ केट, सतविंदर यानी सैट को बता रही थी, ‘‘2 साल का कोर्स है और पढ़ने हेतु वह पाकिस्तान जाएगा.’’

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